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भी लिखती जाती थी। आलू, टमाटर, कद्दू, केले, पालक, सेम, सन्तरे, गोभी, सब चीजों का तौल और दर उसे याद था। रमा से दोबारा पढ़वाकर उसने सुना, तब उसे सन्तोष हुआ। इन सब कामों से छुट्टी पाकर उसने अपनी चिलम भरी और मोड़े पर बैठकर पीने लगी, लेकिन उसके अन्दाज से मालूम होता था कि वह तम्बाकू का रस लेने के लिए नहीं, दिल को जलाने के लिए पी रही है। एक क्षण के बाद बोली- दूसरी औरत होती तो घड़ी भर इनके साथ निबाह न होता। पहर रात से चक्की में जुत जाती हूँ और दस बजे रात तक दूकान पर बैठीं सती होती रहती हूँ। खाते-पीते बारह बजते हैं। तब जाकर चार पैसे दिखायी देते हैं। और जो कुछ कमाती हूँ, यह नशे में बरबाद कर देता है। सात कोठरी में छिपा के रखूँ पर इसकी निगाह पहुंच जाती है। निकाल लेता है। कभी एक-आध चीज वस्तु बनवा लेती हूँ तो वह आँखों में गड़ने लगती है ! तानो से छेंंदने लगता है। भाग में लड़कों का सुख भोगना नहीं बदा था, तो क्या करू ? छाती फाड़के मर जाऊँ ? मांगे से मौत भी तो नहीं मिलती। सुख भोगना लिखा होता, तो जवान बेटे चल देते, और इस पियक्कड़ के हाथों मेरी यह सांसत होती ? इसी ने सुदेसी के झगड़े में पड़कर मेरे लालों की जान ली। आयो इस कोठरी में भैया, तुम्हें सुन्दर की जोड़ी दिखाऊँ। दोनों इस जोड़ी से पांच-पांच सौ हाथ फेरते थे।

अंधेरी कोठरी में जाकर रमा ने सुन्दर की जोड़ी देखी। उस पर बानिश थी साफ-सुथरी, मानो किसी ने फेरकर रख दिया हो।

बुढ़िया ने सगर्व नेत्रों से देखकर कहा—— लोग कहते थे कि यह जोड़ी महाब्राह्मन को दे दो, तुझे देख-देख कलक होगा। मैंने कहा—यह जोड़ी मेरे लालों की जुगल जोड़ो है। यही मेरे दोनों लाल हैं।

बुढ़िया के प्रति आज रमा के हृदय में असीम श्रद्धा जागृत हुई। कितना पावन धर्य है, कितनी विशाल वत्सलता, जिसने लकड़ो के इन दो टुकड़ों: को जीवन प्रदान कर दिया है! रमा मे जग्गो को माया और लोभ में डूबी हुई, पैसे पर जान देनेवाली, कोमल भावों से सर्वथा विहीन समझ रखा था। आज उसे विदित हुआ कि उसका हृदय कितना स्नेहमय, कितना कोमल, कितना मनस्वी है। बुढ़िया ने उसके मुँँह की ओर देखा तो न जाने क्यों

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