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बुरा मालूम होता है, तो लाओ एक हजार निकाल कर दे दो, महाजन को दे आऊँ, देती हो? बुरा मुझे खुद मालूम होता है; लेकिन उपाय क्या है? गला कैसे छूटेगा?

जागेश्वरी--बेटे का व्याह किया है कि स्ट्ठा है? शादी-व्याह मे सभी कर्ज लेते हैं, तुमने कोई नयी बात नहीं की। खाने-पहनने के लिये कौन कर्ज लेता है। धर्मात्मा बनने का कुछ फल मिलना चाहिये या नहीं? तुम्हारे ही दर्जे पर सत्यदेव है, पक्का मकान खड़ा कर दिया, जमींदारी खरीद ली, अपनी बेटी के ब्याह में कुछ नहीं तो पांच हजार तो खर्च किये ही होंगे!

दयानाथ--जभी दोनों लड़के भी तो चल दिये?

जागेश्वरी--मरना-जीना तो संसार की गति है। लेते हैं वह भी मरते हैं, नहीं लेते वह भी मरते हैं। अगर तुम चाहो तो छः महीने में सब रुपये चुका सकते हो।

दयानाथ ने त्योरी चढ़ाकर कहा--जो बात जिन्दगी भर नहीं की, वह अब आखिरी वक्त नहीं कर सकता। बहू से साफ-साफ कह दो, उससे परदा रखने की जरूरत ही क्या है, और परदा रह ही के दिन सकता है? आज नहीं तो कल उसे सारा हाल मालूम हो ही जायगा। बस, तीन-चार चीजें लौटा दे, तो काम बन जाय। तुम उससे एक बार कहो तो?

जागेश्वरी झुँझलाकर बोली--उससे तुम्हीं कहो, मुझ से तो न कहा जायगा।

सहसा रमानाथ टेनिस रैकेट लिये बाहर से आया। सफेद टेनिस शर्ट था, सफेद पतलून, कैनवस का जूता--गोरे रंग और सुन्दर मुखाकृति पर इस पहनावे ने रईसों की शान पैदा कर दी। रूमाल में बेले के गजरे लिये हुए था। उससे सुगन्ध उड़ रही थी। माता-पिता की आँखें बचाकर वह जीने पर जाना चाहता था, कि जागेश्वरी ने टोका-इन्ही के तो सब कांटे बोये हुए हैं, इनसे क्यों नहीं सलाह लेते? (रमा से) तुमने नाच तमाशे में बारह-तेरह सौ रुपये उड़ा दिये, बतलायो सराफ़ को क्या जवाब दिया जाय? बड़ी मुश्किलों से कुछ गहने लौटाने पर राजी हुमा, मगर बहु से गहने मांगे कौन? यह सब तुम्हारी ही करतूत है।

रमानाथ ने इस आक्षेप को अपने ऊपर से हटाते हुए कहा--मैने क्या

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