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कपड़े पहने इधर-उधर घूमा करते हैं। कौन जाने जो आदमी मेरी बग़ल में आ रहा है, कोई जासूस ही हो। मेरी ओर कितने ध्यान से देख रहा है। यह सिर झुकाकर चलने से ही तो नहीं उसे संदेह हो रहा है। यहाँ ओर सभी सामने ताक रहे हैं। कोई यों सिर झुकाकर नहीं चल रहा है। मोटरों के इन रेलपेल में सिर झुकाकर चलना मौत को नेयता देना है। पार्क में कोई इस तरह चहलकदमी करे तो कर सकता है ! यहाँ तो सामने देखना चाहिए। लेकिन वग़ल वाला आदमी अभी तक मेरी ही तरफताक रहा है। शायद कोई कुफ़िया हो। उसका साथ छोड़ने के लिए वह एक तमोली की दूकान पर पान खाने लगा। वह आदमी मागे निकल गया। रमा ने आराम की लम्बी सांस ली।

अब उसने सिर उठा लिया और मजबूत दिल करके चलने लगा। इस वक्त ट्रामे का भी कहीं पता न था, नहीं उसी पर बैठ लेता। थोड़ी दूर चला होगा कि तीन कांसटेवल आते दिखाई दिये। रमा ने सड़क छोड़ दी और पटरी पर चलने लगा। ख्वाहमख्वाह साँप के बिल में ऊँगली डालना कौन-सी बहादुरी है। दुर्भाग्य की बात, तीनो कांस्टेबलों ने भी सड़क छोड़कर वही पटरी ले ली। मोटरों के आने-जाने से बार बार इधर-उधर दौड़ना पड़ता था। रमा का कलेजा धक-धक करने लगा। दूसरी पटरी पर जाना तो सन्देह को और भी बढ़ा देगा। कोई ऐसी गली भी नहीं, जिसमें घुस जाऊँ। अब तो सब बहुत समीप' आ गये। क्या बात है, सब मेरी ही तरफ देख रहे हैं। मैंने बड़ी हिमाकत की कि यह पगड़ बाँध लिया, और बाँधी भी कितनी बेलुकी ! एक टोले-सा ऊपर उठ गया है। यह पगड़ी आज मुझे पकड़ायेगी। बांधी थी कि इससे सूरत बदल जायगी। यह उलटे और तमाशा बन गयी। हाँ, तीनों मेरी ही ओर ताक रहे हैं। आपस में बात भी कर रहे हैं। रमा को ऐसा जान पड़ा, पेरों में शक्ति नहीं है। शायद सब मन में मेरा हुलिया मिला रहे हैं। अब नहीं बच सकता ! घरवालों को मेरे पकड़े जाने की "खबर मिलेगी तो कितना लज्जित होंगे ! जालपा तो रो-रोकर प्राण दे देगी। पांच साल से कम सजा न होगी। आज इस जीवन का अन्त हो रहा है।

इस कल्पना ने उसके ऊपर ऐसा आतंक जमाया कि उसके औसान जाले रहे। जब सिपाहियों का दल समीप आ गया, तो उसका चेहरा भय से कुछ ऐसा विकृत हो गया, और आँखें कुछ ऐसी सशंक हो गयी, और अपने का

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