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दारोगा ने गम्भीर भाव से कहा——मामला कुछ संगीन है, क्या कुछ शराब का चस्का पड़ गया था ?

'मुझसे कसम ले लीजिए, जो कभी शराब मुंह से लगायी हो।'

कांसटेबल : विनोद करके कहा——मुहब्बत के बाजार में लुट गये होंगे हजूर !

रमाने मुस्कराकर कहा——मुझसे फाकामस्तों का वहाँ कहाँ गुजर ?

दारोगा——तो क्या हुआ ? खेल डाला ? या बीबी के लिए जेबर बनवा डाला?

रमा झेंंपकर रह गया। अपराधी मुस्कराहट उसके मुख पर रो पड़ी

दारोगा——अच्छी बात है, तुम्हें भी यहाँ खासे मोटे जेवर मिल जायेंगे। एकाएक बूढ़ा देवीदीन आकर खड़ा हो गया

दारोगा ने कठोर स्वर में कहा——क्या काम है यहाँ ?

देवी——हुजूर को सलाम करने चला आया। इन बेचारे पर दया को नजर रहे हुजूर, बेचारे बड़े सीधे आदमी हैं।

दारोगा——बचा, सरकारी मुलजिम को घर में छिपाते हो, उस पर सिफारिश करने आये हो?

देवी——मैं क्या सिफारिश करूँगा हुजूर, दो कौड़ी का आदमी।

दारोगा——जानता है इन पर वारंट है. सरकारी रुपये गबन कर गये हैं।

देवी——हुजूर, भूल-चूक आदमी से ही तो होती है। जवानी की उम्र है ही, खरच हो गये होंगे।

यह कहते हुए देवीदीन ने पांच गिल्लियां कमर से निकालकर मेज पर रख दी।

दरोगा ने तड़पकर कहा——यह क्या है ?

देवी——कुछ नहीं है, हुजूर पान खाने को।

दारोगा——रिश्वत देना चाहता है, क्यों ? कहो तो बचा इसी इलजाम मे भेज दूँ।

देवी०——भेज दीजिये सरकार ! घरवाली लकड़ी-कफन की फिकर से छूट जायगी। वहीं बैठा आपको दुआ दूँँगा। गबन

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