दारोगा——अबे इन्हें छोड़ाना है, तो पचास मिनियाँ लाकर सामने रखा। जानते हो, इनकी गिरफ्तारी पर पांच सौ रुपये का इनाम है।
देवी——पाप लोगों के लिए इतना इनाम क्या है। यह गरीब परदेसी आदमी हैं, जब तक जियेंगे आपको याद करेंगे।
दारोगा——बक-बक मत कर। यहाँ धरम कमाने नहीं पाया हूँ।
देवी——बहुत तंग हूँ हुजूर। दुकान-दौरी तो नाम की है।
कांसटेबल——बुढ़िया से माँग जाके !
देवो०——कमानेवाला तो मैं हूँ भैया, लड़कों का हाल जानते ही हो। तन पेट काटकर कुछ रुपये जमा कर रखे थे, सो अभी सात धाम किये चला अाला हूँ। बहुत तंग हो गया हूं।
दारोगा—— तो अपनी गिन्नियाँ ऊन ले। इसे बाहर निकाल दो जी।
देवी——पापका हुकम, तो लीजिए जाता है। धक्के क्यों दिलवाइगो ?
दारोगा——(कांसटेबल) इन्हें हिरासत में रखो। मुंशी से कहो, इनका वयान लिन लें।
देवीदीन के होंठ पावेश से कांप रहे थे। उसके चेहरे पर इतनी अग्रता रमा ने कभी नहीं देखी थी, जैसे कोई चिड़िया अपने घोंसले में कौवे को धुसते देखकर विह्वल हो गयी हो। वह एक मिनट तक थाने के द्वार पर खड़ा रहा, फिर पीछे फिरा और एक सिपाही से कुछ कहा, तब लपका हुमा सड़क तक चला गया मगर एक ही पम में फिर लौटा और दारोगा से बोला-हुजूर दो घंटे की मुहलत न दीजिएगा ?
रमा अभी वहीं खड़ा था। उसकी यह मनता देखकर रो पड़ा। बोला——दादा, अव तुम हैरान न हो, मेरै भाग्य में जो कुछ लिखा है, वह होने दो। मेरे पिता भी यहाँ होते तो इससे ज्मादा और क्या करते। मैं मरते दम तक तुम्हारा उपकार....
देवीदीन ने प्राखें पोंछते हुए कहा——कैसी बात करते हो, भैया ? जब रुपयों पर आई, तो देवीदीन पीछे हटने वाला प्रादमी नहीं है। इतने रुपये तो 'एक-एक दिन जुए में हार-जीत गया हूँ। अभो घर बेच हूँ. तो दस हजार को मालियत है। क्या सिर पर लादकर ले जाऊँगा ! दारोगाजो, अभी भैया गबन