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येगी। जिन्दगी खराब हो जायगी। तुम अपना नफा-नुकसान खुद समझ लो। मैं जबरदस्ती नहीं करता।

दारोगाजी ने डकेती का वृत्तान्त कह सुनाया। रमा ऐसे कई मुकदमे समाचार-पत्रों में पढ़ चुका था। संशय के भाव से बोला——तो मुझे मुखबिर बनना पड़ेगा और यह कहना पड़ेगा कि मैं भी इन डकैतियों में शरीक था? यह तो झूठी शहादत हुई।

दारोगा——मुआमला बिलकुल सच्चा है। आप बेगुनाहों को न फंसायेंगे। वही लोग जेल जायेंगे जिन्हें जाना चाहिए ! फिर झूठ कहाँ रहा। डाकुओं के डर से वहाँ के लोग शहादत देने पर राजी नहीं होते। बस और कोई बात नहीं। यह मैं मानता हूँ कि आपको कुछ झूठ बोलना पड़ेगा; लेकिन आपकी जिन्दगी बनी जा रही हैं। इसके लिहाज से तो झूठ कोई चीज नहीं। खुब सोच लीजिये। शाम तक जवाब दीजिएगा।

रमा के मन में बात बैठ गई। अगर एक बार झूठ बोलकर वह अपने पिछले कर्मों का प्रायश्चित कर सके और अपना भविष्य भी सुधार ले, तो पूछना ही क्या। जेल से तो बच जायगा। इसमें बहुत आगा-पीछा करने की जरूरत ही न थी। हाँ, निश्चय हो जाना चाहिए कि उस पर फिर म्युनिसिपलिटी अभियोग न चलायेगी और उसे कोई अच्छी जगह मिल जायेगी। वह जानता था, पुलिस को गरज है और वह मेरी वाजिव शर्त अस्वीकार न करेगी। इस तरह बोला, मानो उसकी आत्मा धर्म और अधर्म के संकट में पड़ी हुई है। मुझे यही डर है कि कहीं मेरी गवाही से बेगुनाह लोग न फंस जायें।

दारोगा——इसका मैं आपको इतमीनान दिलाता हूँ।

रमा——लेकिन कल को म्टी म्युनिसिपैलिटी मेरी गर्दन नापे तो मैं किसे पुकारूंगा?

दारोगा——मजाल है, म्युनिसिपैलिटी भी कर सके। फौजदारी के मुकदमे में मुहई तो सरकार होगी। जब सरकार आपको मुसाफ कर देगी, तो मुकदमा कैसे चलायेगी। आपको तहरोरी मुआफी-नामा दे दिया जायगा, साहब।

रमा०——और नौकरी?

दरोगा-वह लरकार आप इन्तजाम करेगी। ऐले आदमियों को गबन

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