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से वैसे ही है। माहे में जाय वह तमाशा ! उसी के लिए टिकट सेने जाते थे। न घर से निकलते न यह बला सिर पड़ती।

देवी——जो उधर ही से पराग भेज दिया तो?

जग्गो——तो चिट्ठी तो आवेगी ही चलकर वहीं देख पायेगे। दे

देयी——(आँखों में आँसू भरकर) सजा हो जायगी तो?

जग्गो——रुपया जमा कर देंगे तब काहे को सजा होगी। सरकार मरने रुपये ही तो लेगो ?

देवी०——नहीं पगली, ऐसा नहीं होता। दोर माल लौटा दे वो वह छोड़ थोड़े ही दिया जायगा !

जन्गो ने परिस्थिति की कठोरता का अनुभव करके बाहा-- बारोगाजो...

वह अभी बात भी पूरी न करने पायी थी कि दारोगाजी की मोटर सामने आ पहुँची। इन्स्पेक्टर साहब भी थे। रमा इन दोनों को देखते ही मोटर से उतरकर पाया और प्रसन्न मुख से बोला-नुस यहाँ देर से बैठे हो क्या यादा ? मानो कमरे में चलो। अम्मा, तुम कब प्रायौं ?

दारोगाजी ने विनोद करके कहा--कहो चौधरी लाये रुपये ? देवी-जब कह गया कि मैं थोड़ी देर में आता हूँ, तो श्रापको मेरी राह देख लेनी चाहिए थी। चलिए अपने स्पए लीजिए। दारोगा-खोदकर निकाले होंगे?

देवी——आपके अकबाल से हजार-पांच सौ अभी ऊपर हो निकल सकते हैं। जमीन खोदने की जरूरत नहीं पड़ी। चलो भैया, बुढ़िया कब से खड़ी है, मैं रुपये दुकाकर आता हूँ। यह तो इसपिट्टर साहब थे त ? पहले इसी थाने में थे।

दारोगा——तो भई, अपने रुपये ले जाकर उसी हाँड़ी में रख दो। अफसरों को सलाह हुई कि इन्हें छोड़ना न चाहिए ! मेरे बस की बात नहीं है।

इन्स्पेक्टर साहब तो पहले ही दफ्तर में चले गये थे। ये तीनों प्रादमी बातें करते उसके वगलवाले कमरे में गये।

देवीदीन ने दरोगा की बात सुनी, तो उसकी भौहें तिरछी हो गयीं। बोला——दारोगाजो मरदों की एक बात होती है, मैं तो यही जानता हूँ। मैं

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