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देवी——पछताओगे सरकार, कहे देता है, पछताओगे।

रमा अब जब्त न कर सका। अब तक वह देवीदीन के बिगड़ने का तमाशा देखने के लिए भीगी ब्बिल्ली-सा बना पड़ा था। कहकहा मारकर बोला-दादा, दारोगाजी तुम्हें चिढ़ा रहे हैं ! हम लोगों में ऐसी सलाह हो गया है कि मैं बिना कुछ दिये-लिये ही छुट जाऊँगा, ऊपर से नौकरी भी मिल जायगी। साहब ने पक्का वायदा किया है। मुझे अब यहीं रहना होगा।

देवीदीन ने रास्ता भटके हुए आदमी की भांति कहा——कैसी बात है भैया, क्या कहते हो ? या पुलिसवालों के चकमे में आ गये ? इसमें कोई-न-कोई चाल ज़रूर छिपी होगी।

रमा ने इतमीनान के साथ कहा——और कोई बात नहीं, एक मुकदमे में शहादत देनी पड़ेगी।

देवीदीन ने संशय से सिर हिलाकर कहा——झूठा मुकदमा होगा।

रमा——नहीं दादा, बिल्कुल सच्चा मामला है। मैंने पहले ही पूर्ण लिया है।

देवोदीन को शंका न शान्त हुई। बोला——मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता भैया, जरा सोच-समझकर काम करना। अगर मेरे रुपयों को डरते हो तो यहीं समझ लो कि देवीदीन ने अगर रुपयों की परवाह की होती, तो आज लखपती होता। इन्हीं हाथों से सौ-सौ रुपये रोज कमाये और सब-के-सब, उड़ा दिये है। किस मुकदमे में शहादत देनी है ? कुछ मालूम हुआ?

दारोगाजी ने रमा को जवाब देने का अवसर न देकर कहा—— वही डकेतियोंवाला मामला है जिसमें कई गरीब आदमियो की जान गयी थी। इन डाकुओं ने सूबे-भर में हंगामा मचा रखा था। उनके डर के मारे कोई आदमी गवाही देने पर राजी नहीं होता।

देवीदीन ने उपेक्षा के भाव से कहा——अच्छा, तो यह कहो मुखबिर बन गये? यह बात है ! इसमें तो जो पुलिस सिखायेगी वही तुम्हें कहना पड़ेगा, भया। मैं छोटी समझ का आदमी हूँ, इन बातों का मरम क्या जान; पर मुखबिर बनने को कहा जाता, तो में न बनता, चाहे कोई लाख रुपये देता। बाहर के आदमी को क्या मालुम कौन अपराधी है, कौन बेकसूर है। दो चार अपराधियों के साथ दो-चार बेकसूर भी जरूर होंगे।

ग़बन
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