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इतने में फिटन भी आ पहुँची। बुढ़िया ने जाकर जालपा को उतरा। जालपा पहले तो साग-भाजी की दुकान देखकर कुछ झिझकी, पर बुढ़िया का स्नेह-स्वागत देख कर उसकी झिझक दूर हो गयी। उसके साथ ऊपर गयी, तो हर एक चीज इस तरह अपनी जगह पर पामी मानो अपना ही घर हो।

जग्गो ने लोटे में पानी रखकर कहा-इसी घर में भैया रहते थे, बेटी। आज पन्द्रह रोज से घर सूना पड़ा हुआ है। मुंह-हाथ धोकर दही-चीनी खा ली न, बेटी ! भैया का हाल तो अभी तुम्हें न मालूम हुआ होगा?

जालपा ने सिर हिलाकर कहा-कुछ ठीक-ठीक नहीं मालूम हुआ। वह जो पत्र छपता है, कहाँ मालूम हुआ था कि पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।

देवीदीन भी ऊपर आ गया था। बोला-गिरफ्तार तो किया था; पर अब तो वह एक मुकदमे में सरकारी गवाह हो गये हैं। परागराज में अब उन पर कोई मुकदमा न चलेगा और सायद नौकरी-चाकरी भी मिल जाय।

जालपा ने गर्व से कहा-क्या इसी डर से वह सरकारी गवाह हो गये हैं ? वहाँ तो उन पर कोई मामला ही नहीं है। मुकदमा क्यों चलेगा ?

देवीदीन ने डरते डरते कहा-कुछ रुपये-पैसे का मुआमला था न ?

जालपा ने मानो आहत होकर कहा-वह कोई बात न थी। ज्योंही हम लोगों को मालुम हुआ कि कुछ सरकारी रकम इनसे खर्च हो गयी है, उसी वक्त पहुँचा दी। यह व्यर्थ घबराकर चले आये, और फिर ऐसी चुप्पी साधी कि अपनी खबर तक न दी।

देवीदीन का चेहरा जगमगा उठा, मानो किसी व्यथा से आराम मिल गया हो, बोला-तो यह हम लोगों को क्या मालुम ! बार-बार समझाया कि घर खत-पत्तर भेज दो, लोग घबराते होंगे; पर मारे शरम के लिखते ही न थे। धोखे में पड़े रहे कि परागराज में मुकदमा चला गया होगा। जानते तो सरकारी गवाह क्यों बनते ?

'सरकारी गवाह' का आशय जालपा से छिपा न था। समाज में उसकी जो निन्दा और अपकीर्ति होती है, यह भी उससे छिपी न थी। सरकारी गवाह क्यों बनाये जाते हैं, किस तरह उन्हें प्रलोभन दिया जाता है, किस भाँति वह पुलिस के पुतले बनकर अपने ही मित्रों का गला घोंटते हैं, यह उसे मालूम

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