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ओर, उनकी निगाह में दोनों बराबर थे। वह किसी के साथ रू-रियायत न करते। इसलिए पुलिस ने रमा को एक बार उन स्थानों की सैर कराना जरूरी समझा जहाँ वारदात हुई थी। एक जमींदार की मजी-सजाई कोठी में डेरी पड़ा। दिन-भर लोग शिकार खेलते, रात को ग्रामोफोन सुनते, ताश खेलते और बजरों पर नदियों की सैर करते। ऐसा जान पड़ता था, कि कोई राजकुमार शिकार खेलने निकला है।

इस भोग-विलास में रमा को अपर कोई अभिलाषा थी, तो यह कि जालपा भी यहाँ होती। अब तक वह पराश्रित था, दरिद्र था, उसकी विलासेन्द्रियाँ मानो मूर्छित हो रही थीं। इन शीतल झोकों ने उन्हें फिर सचेत कर दिया। वह कल्पना में मग्न था, कि यह मुक़दमा खत्म होते ही उसे अच्छी जगह मिल जायेगी। तब वह जाकर जालपा को मना लायेगा और आनन्द से जीवन सुख भोगेगा। हाँ, वह नये प्रकार का जीवन होगा, उसकी मर्यादा कुछ और होगी, सिद्धान्त कुछ और होंगे; उसमें कठोर संयम होगा और पक्का नियंत्रण। अब उसके जीवन का कुछ उद्देश्य होगा, कुछ आदर्श होगा। केवल खाना, सोना, और रुपये के लिए हाय-हाय करना ही जीवन का व्यवहार न होगा। इसी मुकदमे के साथ इस मार्ग-हीन जीवन का अन्त हो जायगा। दुर्बल इच्छा ने उसे यह दिन दिखाया था और अब एक नये और सुसंस्कृत जीवन का स्वप्न दिखा रही थी। शराबियों की तरह ऐसे मनुष्य भी रोज ही संकल्प करते हैं; लेकिन उन संकल्पों का अस्त क्या होता है ? नये-नये प्रलोभन सामने आते रहते हैं और संकल्प की अवधि भी बढ़ती चली जाती है। नये प्रभात का उदय कभी नहीं होता।

एक महीने देहात की सैर करने के बाद रमा पुलिस के सहयोगियों के साथ अपने बँगले पर जा रहा था ! रास्ता देवीदीन के घर के सामने से था। कुछ दूर ही से उसे कमरा दिखायी दिया। अनायास ही उसकी निगाह ऊपर उठ गयी। खिड़की के सामने कोई खड़ा था। इस वक्त देवीदीन यहाँ क्या कर रहा है ? उसने जरा ध्यान से देखा। यह तो कोई औरत है ! मगर औरत कहाँ से आयी। क्या देवीदीन ने वह कमरा किराये पर तो नहीं उठा दिया ? ऐसा तो उसने कभी नहीं किया।

मोटर जरा और समीप आयी, तो उस औरत का चेहरा साफ नजर आने

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