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की धमकी देकर मुझे शहादत देने पर मजबूर किया। अब मुझे मालूम हो गया, कि मेरे ऊपर कोई इल्जाम नहीं। आप लोगों का चकमा था। मैं अब पुलिस की तरफ़ से शहादत नहीं देना चाहता, मैं आज जज साहब से साफ़ कह दूंगा ! वेगुनाहों का खून अपनी गर्दन पर न लूँँगा !

दारोगा ने तेज होकर कहा——आपने खुद गवन तस्लीम किया था।

रमाo——मीजान की गलती थी, गबन न था | म्युनिसिपैलिटी ने मुझे पर मुकदमा नहीं चलाया।

'यह आपको मालूम कैसे हुआ?'

'इससे आपको कोई बहस नहीं ! मैं शहादत न दूंगा। साफ़-साफ़ कह दूंगा, पुलिस ने मुझे धोखा देकर शहादत दिलवायी है। जिन तारीखों का यह वाकया है, उन दारीखों में मैं इलाहाबाद में था। म्युनिसिपल आफिस की हाजिरी मौजूद है।'

दारोगा ने इस आपत्ति को हँसी में उड़ाने की चेष्टा करके कहा——अच्छा साहब, पुलिस ने घोखा ही दिया; लेकिन उसकी खातिर वह इनाम देने को भी तो हाजिर है, कोई अच्छी जगह मिल जायगी, मोटर पर बैठे हुए सैर करोगे। खुफ़िया पुलिस में कोई जगह मिल गयी, तो चैन-ही-चैन है। सरकार की नजरों में इज्जत और रमूख कितना बढ़ गया। यों मारे मारे फिरते। शायद किसी दफ्तर में क्लर्की मिल जाती, वह भी बड़ी मुश्किल से। यहाँ तो बैठे-बिठाये तरक्की का दरवाजा खुल गया। अच्छी कारगुजारी होगी, तो एक दिन राय बहादुर मुंशी रमानाथ डिप्टी सुपरिन्टेण्ट हो जाओगे। तुम्हें हमारा एहसान मानना चाहिए ! और आप उल्टे खफा होते हैं।

रमा पर इस प्रलोभन का कुछ भी असर न हुआ, बोला——मुझे क्लर्क बनना मंजूर है; इस तरह की तरक्की नहीं चाहता। यह आप ही को मुबारक रहे।

इतने में डिप्टी साहब और इंस्पेक्टर भी आ पहुंचे। रमा को देखकर इंस्पेक्टर साहब ने समझाया——हमारे बाबू साहब तो पहले से तैयार बैठे हैं। बस, इसी कारगुजारी पर वारा-न्यारा है।

रमा ने इस भाव से कहा, मानों में भी अपना नफा-नुकसान समझता

                                     

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