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हूँ——जी हाँ, आज बारा-न्यारा कर दूंगा। इतने दिनों तक आप लोगों के इशारे पर चला। अब अपनी आँखों से देखकर चलूंगा !

इंस्पेक्टर ने दारोगा का मुंह देखा, दारोगा ने डिप्टी का मुंह देखा, डिप्टी ने इंस्पेक्टर का मुँह देखा। यह क्या कहता है? इंस्पेक्टर साहब विस्मित होकर बोले—— क्या बात है। हलफ़ से कहता हूँ, आप कुछ नाराज मालूम होते है।

रमा——मैंने फैसला किया है, कि आज अपना बयान बदल दूंगा। बेगुनाहों का खून नहीं कर सकता।

इंस्पेक्टर ने दया-भाव से उसकी तरफ़ देखकर कहा——आप बेगुनाहों का खून नहीं कर रहे हैं, अपनी तकदीर को इमारत खड़ी कर रहे है। हलफ़ से कहता हूँ, ऐसे मौके बहुत कम आदनियों को मिलते। आज क्या बात हुई, कि आप इतने खफा हो गये ? आपको कुछ मालूम है दारोगा साहब ? आदमियो ने तो कोई शोखी नहीं की ? अगर किसी ने आपके मिजाज के खिलाफ कोई काम किया हो, तो उसे गोली मार दीजिए, हलफ से कहता हूँ।

दारोगा——मैं अभी जाकर पता लगाता हूँ।

रमा०——आप तकलीफ न करें। मुझे किसी से शिकायत नहीं है। मैं थोड़े से फायदे के लिए अपने ईमान का खून नहीं कर सकता।

एक मिनट सन्नाटा रहा। किसी को कोई बात न सूझी। दारोगा कोई दूसरा चकमा सोच रहे थे, इंस्पेकटर कोई दूसरा प्रलोभन। डिप्टी एक दूसरी ही फिक्र में था। रूखेपन से बोला——रमा बावु यह अच्छा बात न होगा।

रमा ने भी गर्म होकर कहा——आपके लिए न होगी, मेरे लिए तो सबसे अच्छी यही बात है।

डिप्टी——नहीं ! आपका वास्ते इससे बुरा दूसरा वारा नहीं है। हम तुमको छोड़ेगा नहीं। हमारा मुकदमा चाहे बिगड़ जाय; लेकिन हम तुमको ऐसा 'लेसन' दे देगा कि उमिर भर न भूलेगा। आपको वही गवाही देना होगा जो आप दिया। अगर तुम कुछ गड़बड़ करेगा, कुछ भी गोलमाल किया, तो हम तोमारे साथ दोसरा बर्ताव करेगा। एक रिपोर्ट में तुम यों (कलाइयों को ऊपर नीचे रखकर) चला जायगा।

यह कहते हुए उसने आँखे निकालकर रमा को देखा, मानो कच्चा ही

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