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घर से क्या सम्बन्ध है ? न जाने किस पापी ने यह कानून बनाया था। अगर ईश्वर कहीं है और उसके यहाँ कोई न्याय होता है तो एक दिन उसी के सामने उस पापी से पूछेगी, क्या तेरे घर में मां-बहने न थीं ? तुझे उनका अपमान करते लज्जा न आयी ? अगर मेरी जुबान में इतनी ताक़त होती कि सारे देश में उसकी आवाज पहुँचती, तो मैं सब स्त्रियों से कहती——बहनों, किसी सम्मिलित परिवार में विवाह मत करना और अगर करना, तो जब तक अपना घर अजन न बना लो, चैन की नींद मत सोना। यह मत समझो कि तुम्हारे पति के पीछे उस घर में तुम्हारा मान के साथ पालन होगा। अगर तुम्हारे पुरुष ने कोई तरीका नहीं छोड़ा, तो तुम अकेली रहो, चाहे परिवार में, एक ही बात है। तुम अपमान और मजूरी से नहीं बच सकतीं। अगर तुम्हारे पुरुष ने कुछ छोड़ा है, तो अकेली रहकर भोग सकती हो, परिवार में रहकर तुम्हें उससे हाथ धोना पड़ेगा। परिवार तुम्हारे लिए फूलों की सेज नहीं, काँटों की शय्या है; तुम्हारा पार लगाने वाली नौका नहीं, तुम्हें निगल जाने वाला जन्तु है।

संध्या हो गयी थी। गर्द भरी हुई फागुन को वायु चलनेवालों की आंखों में धूल झोंक रही थी। रतन चादर सँभालती सड़क पर चली जा रही थी। रास्ते में कई परिनित स्त्रियों ने उसे टोका, कई ने अपनी मोटर रोक ली और उसे बैठने को कहा; पर रतन को उनकी सहृदयता इस समय चारण-सी लग रही थी। वह तेजी से कदम उठाती हुई जालपा के घर चली आ रही थी। आज उसका वास्तविक जीवन प्रारम्भ हुआ।

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ठीक दस बजे जालपा और देवीदीन कचहरी पहुँच गये। दर्शकों की काफ़ी भीड़ थी। ऊपर गैलरी दर्शकों से भरी हुई थी। कितने ही आदमी बरामदों में और सामने के मैदान में खड़े थे। जालपा ऊपर गैलरी में जा बैठी। देवीदीन बरामदे में खड़ा हो गया।

इजलास पर जज साहब के एक तरफ़ अहलमद था और दूसरी तरफ़ पुलिस के कई कर्मचारी खड़े थे। सामने कठघरे के बाहर दोनों तरफ़ के बकौल खड़े मुकदमा पेश होने का इन्तजार कर रहे थे। मुलजिमों की संख्या पन्द्रह से कम न थी। सब कठघरे के बगल में जमीन पर बैठे हुए थे। सभी के

                                     

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