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जालपा ने कोई जवाब न दिया !

एक दूसरी महिला ने जो आँखों पर ऐनक लगाये हुए थीं, निराशा के भाव से कहा——इस अभागे देश का ईश्वर ही मालिक है। गवर्नरी तो लाला को कहीं मिली नहीं जाती ! अधिक-से-अधिक कहीं क्लर्क हो जायेंगे। उसी के लिए अपनी आत्मा की हत्या कर रहे हैं। मालूम होता है, कोई मरभुखा नीच आदमी है, पल्ले सिरे से कमोना और छिछोरा।

तीसरी महिला ने ऐनकवाली देवी से मुसकराकर पूछा——आदमी फैशनेबुल हैं और पढ़ा-लिखा भी मालूम होता है। भला, तुम इसे पा जाओ तो क्या करो।

ऐनकबाज देवी ने उद्दण्डता से कहा——नाक काट लूं ! बस, नकटा बनाकर छोड़ दूँ !

'और जानती हो, मैं क्या करूँ ?'

'नहीं। शायद गोली मार दोगी?'

न ! गोली न मारूं। सरे बाजार खड़ा करके पांच सौ जूते लगवाऊँ!'

'चाँद गंजी हो जाय !'

उस पर तुम्हें जरा भी दया न आयेगी?'

'यह कुछ कम दया है ? इसकी पूरी सज्ञा तो यह है, कि किसी ऊंची पहाड़ी से ढकेल दिया जाय ! अगर यह महाशय अमेरिका में होते, तो जिन्दा जला दिये जाते।

एक वृद्धा ने इन युवतियों का तिरस्कार करके कहा—— क्यों व्यर्थ में मुँँह खराब करती हो ? यह आदमी घृणा के योग्य नहीं, दया के योग्य है। देखती नहीं हो, उसका चेहरा कैसा पीला हो गया है, जैसे कोई उसका गला दबाये हुए हो। अपनी मां या बहन को देख ले. तो जरूर रो पड़े। आदमी दिल का बुरा नहीं है। पुलिस ने धमकाकर उसे सीधा किया है। मालूम होता है, एक-एक शब्द उसके हृदय को चीर-चीर कर निकल रहा हो।

ऐनकवाली महिला ने व्यंग्य किया—जब अपने पांव में काँटा चुभता है, तब आह निकलती है....

जालपा अब वहाँ न ठहर सकी। एक-एक बात चिनगारी की तरह उसके दिल पर फफोले डाल देती थी। ऐसा जी चाहता था कि इसी वक्त उठकर कह

                                         

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