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'तो मैं मुंह में कालिख लगाकर कहीं निकल जाऊँ ?'

'तुम्हारी खुशी !'

'तुम मुझे क्षमा न करोगी? 'कभी नहीं, किसी तरह नहीं ?

रमा एक क्षण सिर झुकाये खड़ा रहा, तब धीरे-धीरे बरामदे के नीचे जाकर जग्गो से बोला——दादी, दादा आयें तो कह देना, मुझसे जरा देर मिल लें। जहां कहें, आ जाऊँ।

जग्गो ने कुछ पिघलकर कहा——कल यहीं चले आना।

रमा ने मोटर पर बैठते हुए कहा——यहां अब न आऊँगा, दादी !

मोटर चली गयी, तो जालपा ने कुत्सित भाव से कहा-मोटर दिखाने आये थे, जैसे खरीद ही तो लाये हों !

जग्गो ने भर्त्सना की——तुम्हें इतना बे-लगाम न होना चाहिए था, बहू ! दिल पर चोट लगती है; तो आदमी को कुछ नहीं सूझता

जालपा ने निष्ठुरता से कहा——ऐसे हयादार नहीं है। दादी ! इसी सुख के लिए तो आत्मा बेची। उनसे यह सुख भला क्या छोड़ा जायेगा? पूछा नहीं; दादा से मिलकर क्या करोगे ? वह होते तो ऐसी फटकार सुनाते कि छठी का दूध याद आ जाता !

जग्गो ने तिरस्कार के भाव से कहा—— तुम्हारी जगह मैं होती बहू; तो मेरे मुंह से ऐसी बातें न निकलती। तुम्हारा हिया बड़ा कठोर है। दूसरा मर्द होता तो इस तरह चुपके-चुपके न सुनता ? मैं तो थर-थर काँप रही थी कि कहीं तुम्हारे ऊपर हाथ न चला दें। मगर है बड़ा गमखोर !

जालपा ने उसी निष्ठुरता से कहा——इसे गमखोरी नहीं कहते दादी; यह बेह्याई है।

देवीदीन ने आकर कहा-क्या यहां भैया आये थे ? मुझे मोटर पर रास्ते में दिखायी दिये थे।

जग्गो ने कहा——हाँ; आये थे; कह गये हैं। दादा मुझसे जरा मिल लें।

देवीदीन ने उदासीन होकर कहा--मिल लूंगा। यहां कोई बातचीत हुई?

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