पृष्ठ:ग़बन.pdf/२८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

जालपा ने समझाया था। फिर वह शंका मन में उठी नहीं। अफसरों ने बड़ी-बड़ी आशाएं बँधाकर उसे बहला रखा था। वह कहते, अजी, बीवी की कुछ फ़िक न करो। जिस वक्त तुम एक जड़ाऊ हार लेकर पहुँचोगे, और रुपयों की एक थैली नजर कर दोगे, बेगम साहब का सारा गुस्सा भाग . जायेगा। अपने सूबे में किसी अच्छी-सी जगह पर पहुँच जाओगे, आराम से जिन्दगी कटेगी। कैसा गुस्सा ! इसकी कितनी ही आंखों-देखी मिसालें दी गयीं। रमा चक्कर में आ गया। फिर उसे जालपा से मिलने का अवसर ही न मिला। पुलिस का रंग जमता गया। आज वह जड़ाऊ हार जेब में रखे जालपा को अपनी विजय की खुशखबरी देने गया था। वह जानता था कि यह हार देखकर वह जरूर खुश हो जायेगी। कल ही संयुक्त प्रांत के होम सेक्रेटरी के नाम कमिश्नर-पुलिस का पत्र उसे मिल जायेगा। दो-चार दिन यहां खूब सैर करके घर की राह लेगा। देवीदीन और जग्गो को भी बड़े अपने साथ ले जाना चाहता था। उनका एहसान वह कैसे भूल सकता था। यही मन्सूबे मन में बांधकर वह जालपा के पास आया था, जैसे कोई भक्त फूल और नैवेद्य लेकर देवता की उपासना करने जाय। पर देवता ने वरदान देने के बदले उसके थाल को ठुकरा दिया, उसके नैवेद्य को पैरों से कुचल डाला। उसे कुछ कहने का अवसर ही न मिला। आज पुलिस के विषैले वातावरण से निकलकर उसने स्वच्छ वायु पायी थी और उसकी सुबुद्धि सचेत हो गयी थी। अब उसे अपनी पशुता अपने यथार्थ रूप में दिखयी दी-कितनी विकराल, कितनी दानवी मूर्ति थी। वह स्वयं उसकी ओर ताकने का साहस न कर सकता था। उसने सोचा, इसी वक्त जज के पास चलूँ और सारी कथा कह सुनाऊँ। पुलिस मेरी दुश्मन हो जाय, मुझे जेल में सड़ा डाले, कोई परवाह नहीं। सारी कलई खोल दूंगा। क्या जज अपना फैसला नहीं बदल सकता ? अभी मुलाजिम हवालात में हैं। पुलिसवाले खूब दांत पीसेंगे, खूब नामें कूदेंगे; शायद मुझे कच्चा ही खा जाये। खा जायें ! इसी दुर्बलता ने तो मेरे मुख में कालिख लगा दी।

जालपा की क्रोधोन्मत्त मति उसको आंखों के सामने फिर गयी। ओह ! कितने गुस्से में थी! मैं जानता कि वह इतना बिगड़ेगी, तो चाहे दुनिया इधर-से-उधर हो जाती अपना बयान बदल देता। बड़ा चकमा दिया इन

२७९
ग़बन