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पुलिसवालों ने। अगर कहीं जज ने कुछ नहीं सुना और मुलजिमों को बरी न किया, तो जालपा मेरा मुंह न देखेंगी। मैं उसके पास कौन मुंह लेकर जाऊँगा। जिन्दा रहकर ही क्या करूँगा ? किसके लिए?

उसने मोटर रोकी और इधर-उधर देखने लगा। कुछ समझ में न आया, कहाँ आ गया। सहसा एक चौकीदार नजर आया। उससे जज साहब के बँगले का पता पूछा। चौकीदार हँसकर बोला -- हुजूर तो बहुत दूर निकल आये। यहां से तो छ:-सात मील से कम न होगा, वह उधर चौरंगी की ओर रहते हैं।

रमा चौरंगी का रास्ता पूछकर फिर चला। नौ बज गये थे। उसने सोचा, जज साहब से मुलाकात न हुई, तो सारा खेल बिगड़ जायगा। बिना मिले हटूँगा ही नहीं। अगर उन्होंने सुन लिया तो ठीक ही है, नहीं कल हाईकोर्ट के जजों से कहूँगा। कोई तो सुनेगा ? सारा वृत्तान्त समाचारपत्रों में छपवा दूंँगा, तब तो सबकी आँखें खुलेंगी?

मोटर तीस मील की चाल से चल रही थी। दस मिनट ही में चौरंगी आ पहुँची। यहां अभी तक वही चहल-पहल थी; मगर रमा उसी सन्नाटे से मोटर लिये जाता था। सहसा एक पुलिसमैन ने लालबत्ती दिखायी। वह रुक गया और सिर बाहर निकालकर देखा तो वही दारोगाजी!

दारोगा ने पूछा -- क्या अभी तक बँगले पर नहीं गये ? इतनी तेज़ मोटर न चलाया कीजिए। कोई वारदात हो जायगी। कहिए, बेगम साहब से मुलाकात हुई ! मैंने तो समझा था, वह भी आपके साथ होंगी। खुश तो खूब हुई होंगी।

रमा को ऐसा क्रोध आया कि इसकी मूंँछें उखाड़ ले, पर बात बनाकर बोला -- जी हां, बहुत खुश हुई ! बेहद !

'मैंने कहा था न ? औरतों की नाराज़ी की यही दवा है। आप काँपे जाते थे।'

'मेरी हिमाकत थी।'

'चलिए, मैं भी आपके साथ चलता हूँ। एक बाजी ताश उड़े और ज़रा सरूर जमे। डिप्टी साहब और इंसपेक्टर साहब आयेंगे। जोहरा को

                                                                 

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