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जोहरा ने पूछा——आज किसी की याद आ रही है क्या ?

यह कहते हुए उसने अपनी गोल,नर्म, मक्खन-सी बांह उसकी गर्दन में डालकर उसे अपनी ओर खींचा। रमा ने अपनी तरफ जरा भी जोर न किया। उसके हृदय पर अपना मस्तक रख दिया, मानो अब यही उसका आश्रय है।

जोहरा ने कोमलता में डूबे हुए स्वर में पूछा——सच बताओ, आज इतने उदास क्यों हो ? मुझसे किसी बात पर नाराज हो !

रमा ने आवेश से कांपते हुए स्वर में कहा——नहीं, जोहरा. तुमने मुझ अभागे पर जितनी दया भी है, उसके लिए मैं हमेशा तुम्हारा एहसानमन्द रहूँगा। तुमने उस वक्त मुझे संभाला, जब मेरे जीवन की टूटी हुई किश्ती गोते खा रही थी। वे दिन मेरी जिंदगी के सबसे मुबारक दिन हैं और उनकी स्मृति को मैं अपने दिल में बराबर पूजता रहूँगा। मगर अभागों को मुसीबत बार-बार अपनी तरफ़ खींचती है। प्रेम का बन्धन भी उन्हें उस तरफ खिंच जाने से नहीं रोक सकता। मैंने आज जालपा को जिस सूरत में देखा है, वह मेरे दिल को भालों की तरह छेद रही है। वह आज फटे-मैले कपड़े पहने, सिर पर गंगा-जल का कलसा लिये चली जा रही थी। उसे इस हालत में देखकर मेरा दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया। मुझे अपनी जिन्दगी में कभी इतना रंज न हुआ था। जोहरा, कुछ नहीं कह सकता उस पर क्या बीत रही है।

जोहरा ने पूछा——वह तो उस बुड्ढे मालदार खटिक के घर पर थी ?

रमा- हाँ थी तो, पर नहीं कह सकता, क्यों वहाँ से चली गयी। इंसपेक्टर साहब मेरे साथ थे। उनके सामने मैं उससे कुछ पूछ न सका। मैं जानता हूँ, वह मुझे देखकर मुंह फेर लेती और शायद मुझे जलील समझती मगर कम-से-कम मुझे इतना तो मालूम हो जाता कि वह इस वक्त इस दशा में क्यों है ? जोहरा, तुम मुझे चाहे दिल में जो कुछ समझ रही हो, लेकिन मैं इस सवाल में मग्न हूँ कि तुम्हें मुझसे प्रेम है। और प्रेम करने वालों से हम कम-से-कम हमदर्दी की आशा रखते हैं ? यहाँ एक भी ऐसा आदमी नहीं, जिससे मैं अपने दिल का कुछ हाल कह सकूँ। तुम भी मुझे रास्ते पर लाने के लिए भेजी गयी थी, मगर तुम्हें मुझ पर दया आयी। शायद तुमने गिरे हुए आदमी पर ठोकर मारना मुनासिब न समझा, अगर आज हम और तुम किसी वजह से रूठ जायें, तो क्या कल तुम मुझे मुसीबत में देखकर मेरे साथ जरा

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