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जोहरा ने उसका हौसला बढ़ाते हुए कहा——तो इसके लिए तुम क्यों इतना रंज करते हो प्यारे ! जोहरा तुम्हारे लिए सब-कुछ करने को तैयार है। मैं कल ही जालपा का पता लगाऊँगी और वह यहाँ रहना चाहेगी तो उसके आराम के सब सामान कर दूँगी, जाना चाहेगी, तो रेल पर भेज दूंगी।

रमा ने बड़ी दीनता से कहा——एक बार मैं उससे मिल लेता तो मेरे दिल का बोझ उतर जाता।

जोहरा चिन्तित होकर बोली——यह तो मुश्किल है, प्यारे! तुम्हें यहाँ से कौन जाने देगा?

रमा०——कोई तरकीब बताओ।

जोहरा——मैं उसे पार्क में खड़ी कर आऊँगी। तुम डिप्टी साहब के साथ वहां जाना और किसी बहाने से उससे मिल लेना। इसके सिवा तो मुझे और कुछ नहीं सूझता।

रमा अभी कुछ कहना ही चाहता था, कि दारोगाजी ने पुकारा——मुझे खिदमत में आने की इजाजत है ?

दोनों संभल बैठे और द्वार खोल दिया। दारोगाजी मुसकराते हुए आये और जोहरा के बगल में बैठकर बोले——यहां आज सन्नाटा कैसा ! क्या आज खजाना खाली है ! जोहरा, आज अपने दस्ते हिनाई से एक जाम भर कर दो। रमानाथ, भाई जान, नाराज न होना।

रमा ने कुछ तुर्श होकर कहा——इस वक्त तो रहने दीजिए, दारोगाजी। आप तो पिये हुए नजर आते हैं ?

दारोगाजी ने जोहरा का हाथ पकड़कर कहा——बस, एक जाम जोहरा। और एक बात और, आज मेरी मेहमानी कबूल करो!

रमा ने तेवर बदलकर कहा——दारोगाजी, आप इस वक्त यहाँ से जायें। मैं यह गवारा नहीं कर सकता।

दारोगा ने नशीली आँखों से देखकर कहा——क्या आपने पट्टा लिखा लिया है ?

रमा ने कड़ककर कहा——जी हाँ, मैंने पट्टा लिखा लिया है।

दारोगा——तो आपका पट्टा खारिज !

रमा——मैं कहता हूँ, यहाँ से चले जाइए।

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