पृष्ठ:ग़बन.pdf/२९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।


दारोगा——अच्छा ! अब तो मेढ़की को भी जुकाम पैदा हुआ। क्यों न हो। चलो जोहरा, इन्हें यहाँ बकने दो।

यह कहते हुए उन्होंने जोहरा का हाथ पकड़कर उठाया।

रमा ने उनके हाथ को झटका देकर कहा——मैं कह चुका, आप यहाँ से चले जायें। जोहरा इस वक्त नहीं जा सकती। अगर वह गयी तो मैं उसका और आपका——दोनों का खून पी जाऊंगा। जोहरा मेरी है, और जब तक मैं हूँ, कोई उसकी तरफ आँख नहीं उठा सकता——

यह कहते हुए उसने दारोगा साहब का हाथ पकड़कर दरवाजे के बाहर निकाल दिया और दरवाजा जोर से बन्द करके सिटकिनी लगा दी। दारोगा जी बलिष्ठ आदमी थे; लेकिन इस वक्त नशे ने उन्हें दुर्बल कर दिया था। बाहर बरामदे में खड़े होकर वह गालियाँ बकने और द्वार पर ठोकर मारने लगे।

रमारमा ने कहा——कहो जाकर बचा को बरामदे के नीचे ढकेल दूं ! शैतान का बच्चा!

जोहरा——बकने दो,आप ही चला जाएगा।

रमा०-चला गया !

जोहरा ने मगन होकर कहा——तुमने बहुत अच्छा किया, सूअर को निकाल बाहर किया। मुझे ले जाकर दिक करता। क्या तुम सचमुच उसे मारते ?

रमा०——मैं उसकी जान लेकर छोड़ता। मैं उस वक्त अपने आपे में न था। न जाने मुझमें उस वक्त कहाँ से इतनी ताकत आ गयी थी।

जोहरा——और जो वह कल से मुझे न आने दे तो ?

रमा०——कौन, मगर इस बीच में उसने जरा भी बाजी मारी तो गोली मार दूंगा। वह देखो ताक पर पिस्तौल रखा हुआ है। तुम अब मेरी हो, जोहरा ! मैंने अपना सब कुछ तुम्हारे कदमों पर निसार कर दिया और तुम्हारा सब कुछ पाकर ही मैं सन्तुष्ट हो सकता हूँ। तुम मेरी हो, मैं तुम्हारा हूँ (किसी तीसरी औरत या मर्द को हमारे बीच में पाने का मजाल नहीं है जब तक मैं मर न जाऊँ।)

जोहरा की आँखें चमक रही थी। उसने रमा की गरदन में हाथ डाल. कर कहा——ऐसी बात मुंह से न निकालो प्यारे !

ग़बन
२९३