पृष्ठ:ग़बन.pdf/३०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

मैंने अनजान बनकर कहा-इसका मतलब मैं नहीं समझी।

जालपा ने सामने ताकते हुए कहा-कभी समझ जाओगी। मेरा प्रायश्चित इस जन्म में न पूरा होगा। इसके लिए मुझे कई जन्म लेने पड़ेंगे।

मैंने कहा-तुम तो मुझे चक्कर में डाले देती हो बहन। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है। जब तक तुम इसे समझा न दोगी, मैं तुम्हारा गला न छोडूंगी।

जालपा ने एक लम्बी सांस लेकर कहा-जोहरा किसी बात को खुद छिपाए रहना इससे ज्यादा आसान है कि दूसरों पर वह बोझ रखूँ।

मैंने आर्तकंठ से कहा- हाँ, पहली मुलाकात में अगर आपको मुझ पर इतना ऐतबार न हो, तो मैं आपको इलजाम न दूंगी; मगर कभी-न-कभी आपको मुझ पर एतबार करना पड़ेगा। मैं आपको छोडूंगी नहीं।

कुछ दूर तक हम दोनों चुपचाप चलती रहीं। एकाएक जालपा ने कांपती हुई आवाज में कहा - जोहरा अगर इस वक्त तुम्हें मालूम हो जाय कि मैं कौन हूँ, तो शायद तुम नफ़रत से मुंह फेर लोगी और मेरे साये से भी दूर भागोगी।

इन लफ्ज़ों में न मालूम क्या जादू था कि मेरे सारे रोएँ खड़े हो गये। यह एक रंज और शर्म से भरे हुए दिल की आवाज थी और उसने मेरी स्याह जिन्दगी की सूरत मेरे सामने खड़ी कर दी। मेरी आँखों में आँसू भर आये। ऐसा जी में आया कि अपना सारा स्वांग खोल दूँ, न जाने उनके सामने मेरा दिल क्यों ऐसा हो गया था। मैंने बड़े-बड़े काइयाँ और छंटेगा हुए शोहदों और पुलिस अफसरों को चपरगट्टू बनाया है, पर उसके सामने मैं भीगी बिल्ली बनी हुई थी। फिर मैंने न जाने कैसे अपने को संभाल लिया।

मैं बोली तो मेरा गला भी भरा हुआ था-यह तुम्हारा खयाल ग़लत है देवी ! शायद तब मैं तुम्हारे पैरों पर गिर पडूंगी। अपनी या अपनों की बुराईयों पर शमिन्दा होना सच्चे दिलों ही का काम है।

जालपा ने कहा-लेकिन तुम मेरा हाल जानकर करोगी क्या ? बस, इतना ही समझ लो, कि एक गरीब अभागिन औरत हूँ, जिसे अपने ही जैसे अभागे और गरीब आदमियों के साथ मिलने-जुलने में आनन्द आता है।

ग़बन
३०३