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दारोगा-मुझे तुम्हारी बातों का यकीन नहीं आता।

यह कहते हुए दारोगा नीचे की कोठरी में घुस गये और हरएक चीज को गौर से देखा ! फिर ऊपर चढ़ गये। वहाँ तीन औरतों को देखकर चौंके। जोहरा को शरारत सूझी, तो उसने लम्बा-सा धुंघट निकाल लिया और अपने हाथ साड़ी में छिपा लिये। दारोगाजी को शक हुआ, शायद हजरत यह भेस बदले तो नहीं बैठे हैं।

देवदीन से पूछा-यह तीसरी औरत कौन है ?

देवीदीन ने कहा- मैं नहीं जानता। कभी-कभी बहू से मिलने आ जाती है।

दारोगा-मुझसे उड़ते हो बचा। साड़ी पहनाकर मुलजिम को छिपाना चाहते हो! इनमें कौन जालपा देवी हैं। उनसे कह दो, नीचे चली जायें। दूसरी औरत को वहीं रहने दो!

जालपा हट गयी, तो दारोगा ने जोहरा के पास जाकर कहा-क्यों हज़रत मुझसे यह चालें ! क्या कहकर वहाँ से आये थे और यहाँ आकर मौज में आ गये ? सारा गुस्सा हवा हो गया। अब यह भेस उतारिये और मेरे साथ चलिए। देर हो रही है।

यह कहकर उन्होंने जोहरा का घूंघट उठा दिया। जोहरा ने टट्ठा मारा। दारोगाजी मानो फिसलकर विस्मय सागर में गिर पड़े। बोले- अरे, तुम हो जोहरा ? तुम यहाँ कहाँ ?

जोहरा-अपनी ड्यूटी बजा रही हूँ।

'रमानाथ कहाँ गये? तुम्हें तो मालूम होगा ?'

वह तो मेरे यहाँ आने के पहले ही चले गये थे। फिर मैं यहीं बैठ गयी और जालपा देवी से बातें करने लगी।'

अच्छा जरा मेरे साथ आओ। उसका पता लगाना है।'

जोहरा ने बनावटी कुतूहल से कहा--क्या अभी तक बंगले पर नहीं पहुँचे ? 'ना ! न जाने कहाँ रह गये ?

जोहरा-ने खूब पट्टी पढ़ाई है। उसके पास जाने को अब जरूरत नहीं है। शायद रास्ते पर आ जाय। रमानाथ ने बुरी तरह डाँटा है। धमकियों से डर गयी है।

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