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मार्ग बन्द कर देना चाहिए। उसके लिए इस समय सबसे उपयुक्त स्थान वह है, जहाँ उसे कुछ दिन आत्म-चिन्तन का अवसर मिले। शायद वहाँ के एकान्तवास में उसको आन्तरिक जागृति प्राप्त हो जाय। आपको केवल यह विचार करना है, कि उसने पुलिस को धोखा दिया या नहीं। इस विषय में अब कोई सन्देह नहीं रह जाता, कि उसने धोखा दिया। अगर धमकियाँ दी गयी थीं तो वह पहली अदालत के बाद जज की अदालत में अपना बयान वापस ले सकता था; पर उस बार भी उसने ऐसा नहीं किया। इससे यह स्पष्ट है, कि धमकियों के आक्षेप मिथ्या है। उसने जो कुछ किया, स्वेच्छा से किया। ऐसे आदमी को यदि दण्ड न दिया गया, तो उसे अपनी कुटिल नीति से काम लेने का फिर साहस होगा और उसकी हिंसक मनोवृत्तियां और भी बलवान हो जायेंगी।

फिर सफ़ाई के वकील ने जवाब दिया-यह मुकदमा अँगरेज़ी इतिहास ही में नहीं, शायद सार्वदेशीय न्याय के इतिहास में एक अद्भुत घटना है। रमानाथ एक साधारण युवक है। उसकी शिक्षा भी बहुत मामूली हुई है। वह ऊँचे विचारों का आदमी नहीं है। वह इलाहाबाद के म्युनिसिपल आफिस में नौकर है। वहाँ उसका काम चुंगी के रुपये वसूल करना है। वह व्यापारियों से प्रथानुसार रिश्वत लेता है। और अपनी आमदनी की परवाह न करता हुआ अनाप-शनाप खर्च करता है। आखिर एक दिन मीज़ान में गलती हो जाने से उसे शंका होती है, कि उससे कुछ रुपये उठ गये। वह इतना घबरा जाता है, कि किसी से कुछ नहीं कहता, बस घर से भाग खड़ा होता है। वहाँ दफ्तर में उसपर सुबहा होता है और उसके हिसाब की जाँच होती है। तब मालूम होता है, कि उसने कुछ गबन नहीं किया, सिर्फ हिसाब की भूल थी।

फिर रमानाथ के पुलिस के पंजे में फंसने, फरजी मुखबिर बनने और शहादत देने का जिक्र करके उसने कहा--

अब रमानाथ के जीवन में एक नया परिवर्तन होता है, ऐसा परिवर्तन जो एक विलास-प्रिय, पदलोलुप युवक को धर्मनिष्ठ और कर्तव्यशील बना देता है। उसकी पत्नी जालपा, जिसे देवी कहा जाय तो अतिशयोक्ति न होगी, उसकी तलाश में प्रयाग से यहाँ आती है और यहाँ जब उसे मालूम होता है, कि रमा एक मुकदमे में पुलिस का मुखबिर हो गया है, तो वह उससे

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