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छिपकर मिलने जाती है। रमा अपने बंँगले में आराम से पड़ा हुआ है। फाटक पर सन्तरी पहरा दे रहा है। जालपा को पति से मिलने में असफलता नहीं होती। तब वह एक पत्र लिखकर उसके सामने फेंक देती है। और देवीदीन के घर चली जाती है। रमा यह पत्र पढ़ता है और उसकी आँखों के सामने से परदा हट जाता है। वह छिपकर जालपा के पास आता है। जालपा उससे सारा वृत्तान्त कह सुनाती है और उससे अपना बयान वापस लेने पर जोर देती है। रमा पहले शंकाएँ करता है। पर बाद में राजी हो जाता है और बँगले पर लौट जाता है। वहाँ वह पुलिस अफसरों से साफ कह देता है, कि मैं अपना बयान बदल दूंगा। अधिकारी उसे तरह-तरह के प्रलोभन देते हैं, पर जब इसका रमा पर कोई असर नहीं होता और उन्हें मालूम हो गया कि उस पर गबन का मुकदमा नहीं है, तो वे उसे जालपा को गिरफ्तार करने की धमकी देते हैं। रमा की हिम्मत टूट जाती है। वह जानता है, पुलिस जो चाहे कर सकती है, इसलिए वह अपना इरादा तबदील कर देता है। और जज के इजलास में अपने पहले बयान का समर्थन कर देता है। अदालत मातहत में रमा से सफाई ने जिरह नहीं किया था। वहाँ उससे जिरह की गयी; लेकिन इस मुकदमें से कोई सरोकार न रखने पर भी उसने जिरहों के ऐसे जवाब दिये, कि जज को भी शक न हो सका और मुलजिमों की सजा हो गयी। रमानाथ की और भी खातिरदारियां होने लगीं। उसे एक सिफारिशी खत दिया गया और शायद उसकी यू०पी० गवर्नमेंट से सिफरिश भी की गयीं।

फिर जालपा देवी ने फांँसी की सजा पाने वाले मुलजिम दिनेश के बाल-बच्चों का पालन-पोषण करने का निश्चय किया। इधर-उधर से चन्दे माँग-मांग कर वह उनके लिए जिन्दगी की जरूरतें पूरी करती थीं, उनके घर का काम-काज अपने हाथों करती थी, उनके बच्चों को खेलाने को ले जाती थीं।

एक दिन रमानाथ मोटर पर सैर करता हुआ जालपा को सिर पर एक पानी का मटका रखे देख लेता है। उसकी आत्म-मर्यादा जाग उठती है। जोहरा को पुलिस-कर्मचारियों ने रमानाथ के मनोरंजन के लिए नियुक्त कर दिया है। जोहरा युवक की मानसिक वेदना देखकर द्रवित हो जाती है

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