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विमर्ष किसी देवी प्ररणा का परिचायक नहीं है ? क्या एक पतिता का ऐसे कार्य में सहायक हो जाना कोई महत्व नहीं रखता? मैं तो समझाता हूँ, रखता है। ऐसे अभियोग रोज नहीं पेश होते। शायद आप लोगों को अपने जीवन में फिर ऐसा अभियोग सुनने का मौका न मिले। यहाँ आप एक अभियोग का फैसला करने बैठे हुए हैं। मगर इस कोर्ट के बाहर एक और बहुत बड़ा न्यायलय है, जहाँ आप लोगों के न्याय पर विचार होगा। जालपा का वहीं फैसला न्यायानुकूल होगा जिसे बाहर का विशाल न्यायालय स्वीकार करे। न्यायालय कानून की बारीकियों में नहीं पड़ता, जिसमें उलझकर, जिनकी पेचीदगियों में फंसकर, हम अक्सर पथ-भ्रष्ट हो जाया करते हैं, अक्सर दूध का पानी और पानी का दूध कर बैठते हैं। अगर आप झूठ पर पश्चाताप करके सच्ची बात कह देने के लिए, भोग-विलासमुक्त जीवन व्यतीत करने के लिए किसी को अपराधी ठहराते हैं, तो आप संसार के सामने न्याय का कोई ऊंचा आदर्श नहीं उपस्थित कर रहे हैं। सरकारी वकील ने इसका प्रत्युत्तर देते हुए कहा-धर्म और आदर्श अपने स्थान पर बहुत ही आदर की चीजें हैं, लेकिन जिस आदमी ने जान बूझकर झूठी गवाही दी, उसने अपराध अवश्य किया। और इसका उसे दंड मिलना चाहिये। यह सत्य है, कि उसने प्रयाग में कोई ग़बन नहीं किया था और उसे इसका भ्रम मात्र था; लेकिन ऐसी दशा में एक सच्चे आदमी का यह कर्तव्य था, कि वह गिरफ्तार हो जाने पर अपनी सफ़ाई देता। उसने सजा के भय से झूठी गवाही देकर पुलिस को क्यों धोखा दिया? यह विचार करने की बात है।

अगर आप समझते है, कि उसने अनुचित काम किया, तो आप उसे अवश्य दण्ड देंगे।

अब अदालत के फैसला सुनाने की बारी आयी। सभी को रमा से सहानुभूति हो गयी थी, पर इसके साथ ही यह भी मानी हुई बात थी कि उसे सजा होगी। क्या सजा होगी, यही देखना था। लोग बड़ी उत्सुकता से फैसला सुनने के लिए और सिमट गये, कुर्सियांँ और आगे खींच ली गयीं, और कनबतियाँ भी बन्द हो गयीं।

'मुआमला केवल यह है, कि एक युवक ने अपनी प्राण-रणा के लिए

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