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पुलिस का आश्रय लिया और जब उसे मालूम हो गया कि जिस भय से वह पुलिस का आश्रय ले रहा है वह सर्वथा निर्मूल है, तो उसने अपना बयान वापस ले लिया। रमानाथ में अगर सत्यनिष्ठा होती, तो वह पुलिस का आश्रय ही क्यों लेता; लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि पुलिस ने उसे रक्षा का यह उपाय सुझाया और इस तरह से झूठी गवाही देने का प्रलोभन दिया। मैं यह नहीं मान सकता कि इस मुआमले में गवाही देने का प्रस्ताव स्वतः उसके मन में पैदा हो गया। उसे प्रलोभन दिया गया, जिसे उसने दंड भय से स्वीकार कर लिया। उसे यह विश्वास दिलाया गया होगा, कि जिन लोगों के विरुद्ध उसे गवाही देने के लिये तैयार किया जा रहा था, वे वास्तव में अपराधी थे, क्योंकि रमानाथ में जहां दण्ड का भय है, वहाँ न्याय-भक्ति भी है। वह उन पेशेवर गवाहों में नहीं है, जो स्वार्थ के लिए निरपराधियों को फंसाने से भी नहीं हिचकते। अगर ऐसी बात न होती, तो वह अपनी पत्नी के आग्रह से बयान बदलने पर कभी राजी न होता। यह ठीक है कि पहली अदालत के बाद ही उसे मालूम हो गया था, कि उस पर गबन का कोई मुकदमा नहीं है और जज की अदालत में वह अपने बयान को वापस ले सकता था। उस वक्त उसने यह इच्छा प्रकट भी अवश्य की; पर पुलिस की धमकियों ने फिर उस पर विजय पाई। पुलिस का बदनामी से बचने के लिए इस अवसर पर उसे धमकियां देना स्वाभाविक है, क्योंकि पुलिस को मुलजिमों के अपराधी होने के विषय में कोई सन्देह न था। रमानाथ धमकियों में आ गया, यह उसकी दुर्बलता अवश्य है; पर परिस्थिति को देखते हुए क्षम्य है। इसलिए मैं रमानाथ को बरी करता हूँ।'

चैत्र की शीतल, सुहावनी, स्फूर्तिमयी सन्ध्या, गंगा का तट, टेसुओं से लहलहाता हुआ ढाक का मैदान, बरगद का छायादार वृक्ष, उसके नीचे बँधी हुई गाय-भैंसे, कददू और लौकी की बेलों से लहराती हुई झोंपड़ियों, न कहीं गर्द न गुबार, न शोर न गुल, सुख और शान्ति के लिए क्या इससे भी अच्छी जगह हो सकती है ? नीचे स्वस्यमयी गंगा लाल, काले, नीले आवरण से चमकती हुई, मन्द स्वरों में गाती, कहीं लपकती, कहीं झिझकती, कहीं चपल, कहीं गम्भीर अनन्त अन्धकार की ओर चली जा रही है, जैसे बहुरंजित बालस्मृति

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ग़बन