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तीनों विकल हो उठे; पर बीस गज तैरकर उस तरफ जाना आसान न था। फिर रमा तैरने में बहुत कुशल न था। कहीं लहरों के जोर में पाँव उखड़ जायँ,तो फिर बंगाल की खाड़ी के सिवा और कहीं ठिकाना न लगे।

जोहरा ने कहा---मैं जाती हूँ।

रमा ने लजाते हुए कहा---जाने को मैं तैयार हूँ; लेकिन वहाँ तक पहुँच भी सकूंगा,इसमें सन्देह है। कितना तोड़ है!

जोहरा ने एक कदम पानी में रखकर कहा---नहीं,मैं अभी निकाले लाती हूँ।

वह कमर तक पानी में चली गयी। रमा ने सशंक होकर कहा---क्यों नाहक जान देने जाती हो? वहाँ शायद एक गड्ढ़ा है। मैं तो जा ही रहा था।

जोहरा ने हाथों से मना करते हुए कहा---नहीं-नहीं,तुम्हें मेरी क़सम तुम न आना। मैं अभी लिये आती हूँ। मुझे तैरना आता है।

जालपा ने कहा---लाश होगी और क्या?

रमा॰---शायद अभी जान हो।

जालपा---अच्छा! जोहरा तो तैर भी लेती है। अभी हिम्मत हुई।

रमा ने जोहरा की ओर चिन्तित आँखों से देखते हुए कहा---हाँ, कुछ जानती तो है। ईश्वर करे लौट आये। मुझे अपनी कायरता पर लज्जा आ रही है।

जालपा ने बेहयाई से कहा---इसमें लज्जा की कौन बात है?मिरी लाश के लिए जान को जोखिम में डालने से फायदा? जीती होती तो मैं खुद तुमसे कहती जाकर निकाल लाओ।

रमा ने आत्म-धिक्कार के भाव से कहा---यहाँ से कौन जान सकता है, जान है या नहीं? सचमुच,बाल-बच्चों वाला आदमी नामर्द हो जाता है। मैं खड़ा रहा और जोहरा चली गयी।

सहसा एक जोर की लहर आयी और लाश को फिर धारा में बहा ले गयी। जोहरा लाश के पास पहुँच चुकी थी। उसे पकड़कर खींचना ही चाहती थी, कि इस लहर ने उसे दूर कर दिया। जोहरा खुद उसके जोर में आ गयी और प्रवाह की ओर कई हाथ बह गयी। वह फिर सँभली; पर एक दूसरी लहर ने उसे ढकेल दिया।

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