रमा--अच्छा आइए, आप भी क्या कहेंगे; मगर मैं पाँच बाजियों से कम न खेलूंगा!
रमेश -पाँच नहीं, तुम इस खेलो जी! रात तो अपनी है। तो चलो फिर खाना खा लें। तब निश्चिन्त होकर बैठे। तुम्हारे घर कहलाये देता हूं कि आज यहीं सोयेंगे इन्तजार न करें।
दोनों ने भोजन किया और फिर शतरंज पर बैठे। पहली बाजी में ग्यारह बज गये। रमेश बाबू को जीत रही। दूसरी बाजी भी उन्हीं के हाथ रही। तिसरी बाजी खतम हुई, तो दो बज गये !
रमा-अब तो मुझे नींद आ रही है।
रमेश- तो मुंह धो डालो, बरफ रखी हुई है। मैं पांच बाजियां खेले बगैर सोने न दूंगा।
रमेश बाबू को यह विश्वास हो रहा था कि आज मेरा सितारा बुलन्द है। नहीं तो रमा को लगातार तीन मात देना आसान न था। वह समझ गये थे, इस वक्त चाहे जितनी बाजियां खेलू जीत मेरी ही होगी; मगर चौथी बाजी हार गये, तो यह विश्वास जाता रहा। उलटे यह भय हुआ कि कहीं लगातार हारता न जाऊँ। बोले- अब तो सोना चाहिए।
रमा०-क्यों, पांच बाजियां पूरी न कर लीजिये ?
रमेश-कल दफ्तर भी तो जाना है। रमा ने अधिक आग्रह न किया। दोनों सोयें।
रमा यों ही आठ से पहले न उठता था फिर आज तो तीन बजे सोया था। आज तो उसे दस बजे तक सोने का अधिकार था। रमेश नियमानुसार पांच बजे उठ बैठे, स्नान किया, संध्या की, घूमने गये और आठ बजे लौटे; मगर रमा तब तक सोता ही रहा। आखिर जब साढ़े नौ बज गये तो उन्होंने उसे जगाया।
रमा में बिगड़कर कहा-नाहक जगा दिया ! कैसी मजे की नींद आ रही थी।
रमेश–अजी, वह अर्जी देना है कि नहीं तुमको ?
रमा -आप दे दीजिएगा।
रमेश- और जो कहीं साहब ने बुलाया, तो मैं ही चला जाऊँगा?
रमा-उँह, जो चाहे कीजिएगा, मैं तो सोता हूँ।