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सूरत से डर लगता है 1 पीते ही बदन में ऐठन होने लगती है और आँखों से चिनगारियाँ निकलने लगती हैं।

रमा ने कहा—— आपने हाजमे की कोई दवा नहीं की?

वकील साहब ने अरचि के भाव से कहा——दवाओं पर मुझे रत्ती भर भी विश्वास नहीं। इन वैद्यों और डाक्टरों से ज्यादा बेसमझ आदमी संसार में न 'मिलेंगे ! किसी में निदान को शक्ति नहीं। दो वैद्यों, दो डाक्टरों के निदान कभी न मिलेंगे। लक्षय वही हैं, पर एक दैव रक्तदोष बतलाता है, दुसरा पित्तदोष। एक डाक्टर फेफड़े की सुजन बतलाता है, दूसरा आमाशय का विकार। बस, अनुमान से दवा की जाती है और निर्दयता से रोगियों की गर्दन पर छुरी फेरी जाती है। इन डाक्टरों ने मुझे तो अब तक जहनुम पहुंचा दिया होता; पर मैं उनके पंजे से निकल भागा। योगाभ्यास की बड़ी प्रशंसासुनता हूँ, पर कोई ऐसे महात्मा नहीं मिलते जिनसे कुछ सौख सकू। किताबों के आधार पर कोई क्रिया करने से लाभ के बदले हानिहोने का डर रहता है ?

यहाँ तो प्रारोग्य-शास्त्र का खंडन हो रहा था, उपर दोनों महिलाओं में प्रगाढ़ स्नेह की बात हो रही थीं।

रतन ने मुसकराकर कहा—— मेरे पतिदेव को देखकर तुम्हें बड़ा आश्चर्य हुआ होगा ?

जालपा को प्राश्चर्य ही नहीं, भ्रम भी हुआ था। बोली—— वकील साहब का दूसरा विवाह होगा ?

रतन——हाँ, अभी पाँच ही बरस तो हुए हैं। इनकी पहली स्त्री को मरे पैतीस वर्ष हो गये। उस समय उनको अवस्था कुल पच्चीस साल की थी। लोगों में समझाया, दूसरा विवाह कर लो; पर इनके एक लड़का हो चुका था, विवाह करने से इन्कार कर दिया और तीस साल तक अकेले रहे। मगर आज पाँच वर्ष हुए जवान बेटे का देहान्त हो गया; तब विवाह करना प्रावश्यक हो गया। मेरे मां-बाप न थे। मामाजी ने मेरा पालन किया था। कह नहीं सकती, इनसे कुछ ले लिया या इनको सज्जनता पर मुग्ध हो गये। मैं तो समझती हूँ, ईश्वर को यही इच्छा थी, लेकिन मैं जब से आई हूँ, मोटी होती चली जाती हूँ। डाक्टरों का कहना है कि तुम्हें सन्तान नहीं हो सकती। बहन, मुझे तो संतान की लालसा नहीं है; लेकिन

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