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देता। वह इन्हीं चिन्ताओ में करवट बदल रहा था, कि जलपा की आँख खुल गयी। रमा ने तुरन्त चादर से मुँह छिपा लिया, मानो बेखबर सो रहा है। जालपा ने धीरे से चादर हटाकर उसका मुँँह देखा, और उसे सोता पाकर ध्यान से उसका मुँँह देखने लगी। जागरण और निंंद्रा का अन्तर उससे छिपा न रहा। उसे धीरे से हिलाकर बोली——क्या अभी तक जाग रहे हो?

रमा०——क्या जाने क्यों नींद नहीं आ रही है। पड़े-पड़े सोचता था,कुछ दिनों के लिये बाहर चला जाऊँ। कुछ रुपये कमा लाऊँ।

जलपा——मुझे तो लेते चलोगे न ?

रमा०——तुम्हें परदेश में कहाँ लिये फिरूंगा?

जलपा——तो मैं यहाँ अकेली रह चुकी। एक मिनट तो रहूँगी नहीं। मगर जाओगे कहाँ ?

रमा०——अभी कुछ निश्चय नहीं कर सका हूँ।

जलपा——तो क्या सचमुच तुम मुझे छोड़कर चले जाओगे ? मुझसे तो एक दिन भी न रहा जाय। मैं समझ गयी, तुम मुझसे मुहब्बत नहीं करते। केवल मुँँह देखे की प्रीति करते हो।

रमा०——तुम्हारे प्रेम-पाश ही ने मुझे यहांँ बाँध रखा है। नहीं तो अब तक कभी चला गया होता।

जलपा——बातें बना रहे हो। अगर तुम्हें मुझसे सच्चा प्रेम होता तो तुम कोई पर्दा न रखते। तुम्हारे मन में कोई ऐसी जरूरी बात है, जो तुम मुझसे छिपा रहे हो। कई दिनों से देख रही हूँ, तुम चिन्ता में डूबे रहते हो। मुझसे क्यों नहीं कहते ? जहाँ विश्वास नहीं हैं, वहाँ प्रेम कैसे रह सकता है ?

रमा०——यह तुम्हारा भ्रम है,जालपा। मैंने तो तुमसे कभी पर्दा नहीं रखा।

जलपा——तो तुम मुझे सचमुच दिल से चाहते हो ?

रमा——यह क्या मुँँह से कहूँगा अभी ?

जलपा——अच्छा, अब मैं एक प्रश्न करती हूँ। संभले रहना। तुम मुझसे क्यों प्रेम करते हो? तुम्हें मेरी कसम है, सच बताना।

रमा०—— यह तो तुमने बेढब प्रश्न किया ! अगर मैं तुमसे यही प्रश्न पूछूँ तो तुम क्या जवाब दोगी?

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