पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/३५६

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संन्यास और फर्मयोग। ३१७ (c " इससे पारदर्शी पुरुष फर्म में भासफि नहीं रखते " (अश्व. ५१.३३), यह वाक्य शाया है। इससे पहले, कर्मयोग का स्पष्ट प्रतिपादन किया गया है, जैसे- कुर्वते ये तु कर्माणि श्रद्दधाना विपश्चितः । अनाशीयोंगसंयुक्तास्ते धीराः साधुदर्शिनः ।। अर्थात् “ जो ज्ञानी पुरुप श्रद्धा से, फलाशा न रख कर, (कर्म-योगमार्ग का अवलम्ब करके, कर्म करते हैं, ये ही साधुदर्शी हैं" (अश्व,५०.६,७)। इसी प्रकार यदिदं वदवचनं कुरु कर्म त्यजेति च । इस पूर्वार्ध में जुड़ा हुआ ही, वगपर्व में युधिष्ठिर को शौनक का, यह उपदेश है-- तस्मादमीनिमान् सर्वानाभिमानात् समाचरेत् । अर्थात् " वेद में कर्म करने और छोडने की भी माज्ञा है इसलिये (कर्तृत्व का) अभिमान छोड़ कर हमें अपने सम्म कर्म करना चाहिये " (वन. २.७३)।शुकानुप्रश्न में भी प्यासजी ने शुक से दो चार स्पष्ट कहा है कि:- एषा पूर्वतरा वृतिळह्मणस्य विधीयते । शानवानेव कर्मणि कुर्वन् सर्वत्र सिध्यति । मावाण की पूर्व की, पुरानी (पूर्वतर) वृत्ति यही है कि ज्ञानवान् हो कर, सय काम करके ही, सिद्धि प्राप्त करे " (मभा. शां. २३७.१२३४. २९)। यह भीप्रगट है कि यहाँ " ज्ञानवानेव " पद से ज्ञानोत्तर और ज्ञानयुक्त कर्म ही विवक्षित है। म यदि दोनों पक्षों के सब वचनों का निराग्रह मुद्धि से विचार किया जाय तो, मालूम होगा कि “ कर्मणा वध्यते जंतुः" इस दलील से सिर्फ कर्मत्याग-विपयक यह एक ही अनुमान निप्पन्न नहीं होता कि " तम्मात्कर्म न कुर्वन्ति " (इससे काम नहीं करते); किन्तु उसी दलील से यह निष्काम कर्मयोग विषयक दूसरा अनुमान भी उतनी ही योग्यता का सिद्ध होता है कि " तस्मात्कर्म निःस्नेहा:"-इससे कर्म में प्रासक्ति नहीं रखते । सिर्फ हम ही इस प्रकार के दो अनुमान नहीं करते, बल्कि व्यासजी ने भी यही अर्थ शुफानुप्रश्न के निम्न श्लोक में स्पष्टतया यतलामा है- द्वाविमावथ पन्थानौ यस्मिन् वेदाः प्रतिष्ठितः । प्रवृत्तिलक्षणो धर्म: निवृत्तिथ विभाषिताः ॥ * " इन दोनों मागों को वेदों का (एक सा) आधार है - एक मार्ग प्रवृत्तिविषयक धर्म का और दूसरा निवृत्ति अर्थात् संन्यास लेने का है " (मभा. शां. २४०.६)।

  • इस अन्तिम चरण के निवृत्तिभ सुभापिन:' और 'निवृत्तिश्च विगाचितः ऐसे पाठ-

भेद भी है। पाठभेद कुछ भी हो पर प्रथम द्वाविमी। यह पद अवश्य है जिससे इतना तो निविवार सिद्ध होता है, कि दोनों पन्य स्वतन्त्र है ।