गीतारहस्य अथवा फर्मयोगशास्त्र । ... अनित्य काम्य फलों के निमित्त देवताओं की उपासना; परन्तु इसमें भी उनकी श्रद्धा का फल भगवान् ही देते हैं.। २४-२८ भगवान् का सत्य स्वरूप अव्यक्त है। परन्तु माया के कारण और द्वन्दमोह के कारण वह दुर्जेय है। माया-मोह के नाश से स्वरूप का ज्ञान । २६, ३० ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, और अधिभूत, अधिदेव, अधियन सव एक परमेश्वर ही है-यह जान लेने से अन्त तक ज्ञानसिद्धि हो लाती है। पृ०७१५-७२६ । आठवाँ अध्याय-अक्षरब्रह्मयोग। ३-४ अर्जुन के प्रश्न करने पर ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदेव, अधियज्ञ और अधिदेह की व्याख्या । उन सब में एक ही ईश्वर है।५-८ अन्त- काल में भगवत्स्मरण से मुक्ति। परन्तु जो मन में नित्य रहता है, वहीं अन्तकाल में भी रहता है। अतएव सदैव भगवान् का स्मरण करने, और युद्ध करने, के लिये उपदेश ।६-१३ अन्तकाल में परमेश्वर का अर्थात् ॐकार का समाधि-पूर्वक ध्यान और उसका फल ! १४-१६ भगवान् का निस्य चिन्तन करने से पुनर्जन्म-नाश । ब्रह्मलोकादि गतियाँ नित्य नहीं हैं। १७-१६ ब्रह्मा का दिन-रात, दिन के प्रारम्भ में अन्यक से सृष्टि की उत्पत्ति और रात्रि के प्रारम्भ में, उसी में लय ।२०-२२ इस अन्यक्क से भी परे का अव्यक्त और अक्षर पुरुष । भक्ति से उसका ज्ञान और उसकी प्राप्ति से पुनर्जन्म का नाश ! २३-२९ देवयान और पितृयाणमार्ग; पहला पुनर्जन्म- नाशक है और दूसरा इसके विपरीत है । २७, २८ इन मागों के तत्त्व को जाननेवाले योगी को अत्युत्तम फल मिलता है, अतः तदनुसार सदा व्यवहार करने का उपदेश। पृ०७२७-७३७ । नवाँ अध्याय-राजविद्या राजगुह्ययोग। 5-३ ज्ञान-विज्ञानयुक्त भक्तिमार्ग मोक्षप्रद होने पर भी प्रत्यक्ष और सुलम है। अतएव राजमार्ग है। ४-६ परमेश्वर का अपार योग-सामर्थ्य । प्राणिमात्र में रह कर भी उनमें नहीं है, और प्राणिमात्र भी उसमें रह कर नहीं हैं !७-१० मायात्मक प्रकृति के द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति और संहार, भूतों की उत्पत्ति और लय । इतना करने पर भी वह निष्काम है, अतएव अलिप्त है। ११, १२ इसे विना पह- चाने, मोह में फंस कर, मनुष्य-देहधारी परमेश्वर की अवज्ञा करनेवाले मूर्ख और आसुरी हैं। ३-१५ ज्ञान-यज्ञ के द्वारा अनेक प्रकार से उपासना करनेवाले दैवी हैं। ६-६ ईश्वर सर्वत्र है, वही जगत् का मा-बाप है, स्वामी है, पोषक है और भले-बुरे का कर्ता है। २०-२२ श्रौत यज्ञ-याग श्रादि का दीर्घ उद्योग यद्यपि स्वर्गप्रद है, तो भी वह फल अनित्य है। योग-क्षेम के लिये यदि ये आवश्यक समझे जाय तो वह भक्ति से भी साध्य है । २३-२५ अन्यान्य देवताओं की भकि पर्याय से परमेश्वर की ही होती है, परन्तु जैसी भावना होगी और जैसा देवता होगा, फल भी वैसा ही मिलेगा । ६ भक्ति हो तो परमेश्वर फूल की पंखुरी से ... I..