पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/६५०

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गीता, अनुवाद और टिप्पणी- १ अध्याय । SS तस्य संजनयन्ह कुरुवृद्धः पितामहः । सिंहनादं विनद्योच्चैः शंखं दध्मौ प्रतापवान् ॥ १२ ॥ ततः शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः । सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥ १३ ॥ ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्पंदने स्थिती। माधवः पांडवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रद्धमतुः ॥ १४ ॥ पांचजन्यं हपीकेशो देवदत्तं धनंजयः। पौड़ दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदरः ॥ १५ ॥ अनंतविजयं राजा कुंतीपुत्रो युधिष्ठिरः। नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥ १६ ॥ काश्यश्च परमेष्वासः शिखंडी च महारथः । धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः॥१७॥ द्रुपदी द्रौपदेयाश्च सर्वशःपृथिवीपते । लाया है, कि भीम का निश्चय था कि हम शिखराढी पर शल न चलावेंगे, इस. लिय शिखरसी की ओर से भीष्म के घात होने की सम्भावना थी। अतएव सद को सावधानी रखनी चाहिये- 1 अरक्ष्यमाणं हि घृको हन्यात सिंह महाबलम् । मा सिंह जम्बुकेनेव घातयेथाः शिखण्डिना ॥ 'महाबलवान सिंह की रक्षा न करें, तो भेड़िया उसे मार डालेगा; इसलिये जिम्युक सदृश शिखण्डी से सिंह का धात न होने दो।" शिखण्डी को छोड़ और दूसरे किसी की भी खबर लेने के लिये भीष्म अकेले ही समर्थ थे, किसी कर सहायता की मन्हें अपेक्षा न थी।] (१२) (इतने में) दुर्योधन को हाते हुए प्रतापशाली वृद्ध कौरव पितामह (सेनापति भीष्म) ने सिंह की ऐसी बड़ी गर्जना कर (लड़ाई की सलामी के लिये) अपना शंख फूंका । (१३) इसके साथ ही साथ अनेक शंख, भेरी (नौवते), पणय, मानक और गोमुख(ये लड़ाई के पाजे) एकदम बजने लगे और इन बाजों का नाद चारों ओर खूब गूंज उठा । (१५) अनन्तर सफेद घोड़ों से जुते हुए बड़े रंय में बैठे हुए माधव (श्रीकृष्ण) और पाण्डव (अर्जुन) ने (यह सूचना करने के लिये कि अपने पक्ष की भी तैयारी है, प्रत्युत्तर के टैंग पर) दिव्य शंख बजाये । (१५) हृषी केश अर्थात श्रीकृष्ण ने पाञ्चजन्य (नाम का शंख), अर्जुन ने देवदत्त, भयकर कम करनेवाले वृकोदर अर्यात भीमसेन ने पौण्डू नामक बड़ा शंख फूकाः (१६) कुन्ती- पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय, नकुल और सहदेव ने सुघोष एवं मणिपुष्पक, (१७) महाधनुर्धर काशिराज, महारथी शिखण्डी, पृष्टद्युम्न, विराट, अजेय सात्यकि,