पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/८४९

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६१० गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र । 8 दंभो दोऽतिमानश्च क्रोधः पारुप्यमेष च । अझानं चाभिजातस्य पार्थ संपदमासुरीम् ॥ ४॥ 68 देवी संपछिमाक्षाय निबंधायासुरी मता। मा शुचः संपदं दैवीममिजातोऽसि पांडव ॥५॥ करके क्रोध से किसी के दिल दुखा देने को भी एक प्रकार की हिंसा ही समझते है। इसी प्रकार शुद्धता को भीत्रिविध मान लेने से, मन की शुदि में आक्रोध और द्रोह न करना आदि गुण भी मालकते हैं। महाभारत के शान्तिपर्व में 1. अध्याय ले लेकर ६३ अध्याय तक क्रम से दम, तप, सत्य और सोम का विस्तृत वर्णन है। वहाँ दम में ही तमा, ति, भाइंसा, सत्य, भार्जव और लज्जा माहि पचीस-तीस गुणों का, व्यापक अर्थ में, समावेश किया गया है (शां. ६०); और सत्य के निरूपण (शां. १६२) में कहा है कि सत्य, समता, दम, अमात्सर्य, हमा, लबा, तितिक्षा, अनस्यता,याग, ध्यान,आर्यता(लोक-कल्याण की इच्छा), धति और दया, इन तेरह गुणों का एक सत्य में ही समावेश होता है और कहीं इन शब्दों की व्याख्या भी कर दी गई है। इस रीति से एक ही गुण में अनेकों का समावेश कर लेना पाण्डित्य का काम है और ऐसा विवेचन करने लगे तो प्रत्येक गुण पर एक-एक अन्य लिखना पड़ेगा । अपर के श्लोकों में इन सब गुणों का समुच्चय इसी लिये बतलाया गया है कि जिसमें देवी सम्पत्ति के सात्त्विकल की पूरी-कल्पना हो जाये और यदि एक शब्द में कोई अर्थ छूट गया हो तो दूसरे शिद में उसका समावेश हो जावे । अस्तुः ऊपर की फेहरित के 'ज्ञानयोग-व्यव- स्थिति' शब्द का अर्थ हमने गीता. १.४१ और ४२ वें श्लोक के माधार पर कर्म- योग-प्रधान किया है। त्याग और पति की व्याख्या स्वयं भगवान ने ही में अध्याय में कर दी है (८.४ और २८)।यह बतला चुके कि देवी सम्पत्ति में किन गुणों का समावेश होता है। अब इसके विपरीत आसुरी या राक्षसी सम्पत्ति का वर्णन करते हैं-] (1) हे पार्थ ! दम्न, दर्प, अतिमान,क्रोध, पारुष्य मर्याद निठुरता और भज्ञान, भासुरी यानी राक्षसी सम्पचि में जन्मे हुए को प्राप्त होते हैं। [महाभारत शान्तिपर्व के १६४ और १६५ अभ्यायों में इनमें से कुछ दोषों का वर्णन है और अन्त में यह भी बतला दिया है कि नृशंस किसे कहना चाहिये । इस श्लोक में 'मज्ञान को आसुरी सम्पत्ति का लक्षण कह देने से प्रगट ोिता है कि 'ज्ञान' देवी सम्पत्ति का लक्षण है। जगत् में पाये जानेवाले दो प्रकार के स्वभावों को इस प्रकार वर्णन हो जाने पर-] (१) (इनमें से) दैवी सम्पति (परिणाम में ) मोक्ष-दायक और मासुरी बन्धनदायक मानी जाती है ! हे पाण्डव !त दैवी सम्पत्ति में जन्मा हुआ है । शोक 'मत कर।