पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/२४

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गीता-हृदय लोगोको लाभ होता ही है और रोकनेगे हानि भी होती है। यहाँनया कि सांस लेने और पलक मारनेमे भी हजारो जीवधार्ग कीटाणु पत्म हो जाते है। इसीलिये अधिकाग लोगोने हानिलागतो ही नोटीपर नेको या वदीकी जांच की जा सकती है। गीताका समन्वय मगर गीताने इन दोनो विचारोसो एलगी और अग माना है। उसके मतसे हमे आदमीयो न्यभावका पयाल को दोनी को मिलाना और उन्हीके आधारपर कर्म, अकगं, कमके त्याग या पण सोन्य- अकर्तव्यका निश्चय करना चाहिये। मोतिपः हाड-माग गोर दिल- दिमागमे हम मनुष्यको जुदा कर सकते नही चोरगे नौनिक पदार्थ बनायत दुनियावी हानिलाभो और चुरेभाकी ही तफ अपने और दौने है। उन्हीको पहचानते और पकते है और उनीने अपना गठगोटा परते है, कि उमी तरह जिन तरह बच्चा मांकी नूरत-गकान या नावाजको सुनते ही उधर दीद पडता और उमीसे गा लिएटताई। इनमें दतीलकी तो गुजाइग नहीं। यह तो कठोर गत्य है। मगर इसमे धोका और मामी रह जाती है, उन वातकी इनमें पूरी सभावना वरावर वनी रहती है। कारण, प्रविलग लोगोगा नागारिक लाभ या नुकसान किसमे है, इस वातका निर्णय प्राय अगभव है। इनके लिये जितने भी तरीके तुझाये गये हैं, सबके गब अधूरे एव दोषपूर्ण है । अल्पमत और बहुमतका निश्चय वर्तमान मानव-समाजके लिये निहायत पेचीदा पहेली है। इसी झमेलेमें दुनिया तबाह हो रही है। ऐसा भी होता है कि तुच्छ निजी स्वार्थ ही कभी-कभी जन-हित जॅचने लगता है। इसीलिये सासारिक हिताहित या हानिलाभ के सिवाय आध्यात्मिक दृष्टिका भी पुट इसमे आ जाना जरूरी हो जाता है। इससे तुच्छ स्वार्थका