पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/३२७

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$ "ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव" ? इसीलिये दो गीताये मानते है। उनके मतसे पहले महाभारत न लिखा जाके भारत ही लिखा गया था। उसीमे गीता भी थी। उसीके बाद वेदान्तसूत्र बने और उनमे गीताको प्रमाणके रूपमे उद्धृत किया गया। इसके बाद समय पाके भारत तखड-पखड और छिन्न-भिन्न हो गया। इसीलिये व्यासने उसे फिरसे एकत्र किया और कुछ इधर-उधरसे उसमे जोडा-जाडा भी। इसीसे भारतका अब महाभारत हो गया। आखिर बडा होनेका कोई कारण भी तो चाहिये और जबतक उसमे कुछ और न जुटता तबतक वह भारत ही न कहा जाके महाभारत क्यो कहा जाता इस प्रकार तर्क-युक्तिके साथ वे महाभारतका पुनर्निर्माण मानते है । या यो कहिये कि भारतमे ही सशोधन और सवर्धन करके उसे महाभारत 'बनाते है । गीता भी उसीमे थी। इसलिये स्वभावत. उसमे भी जरा- मरा सशोधन हुआ और यह "ऋषिभिर्बहुधा" श्लोक उसी सशोधनके फलस्वरूप पीछेसे उसमे जुट गया। इस प्रकार यह महाभारत वेदान्त- सूत्रो के बाद ही तैयार होनेके कारण गीतामें वेदान्तसूत्रोका उल्लेख "ब्रह्मसूत्र" शब्दसे होनेमे कोई आपत्ति नही हो सकती है। यही है सक्षेपमें उनके तर्कों और युक्तियोका निचोड । अब प्रश्न यह होता है कि यदि महाभारतको भारतका सशोधित एव परिवद्धित रूप ही माने और बडा होनेसे ही उसका नाम भी युक्ति- युक्त मानें, तो सामवेदके ताड्य महाब्राह्मण और पाणिनीय सूत्रोके पातजल महाभाष्यके बारेमें क्या कहा जायगा ? यह तो सभी सस्कृतज्ञ जानते है कि सामवेदके ब्राह्मणभागको अन्य वेदोके ब्राह्मणभागोकी तरह केवल तैत्तिरीय ब्राह्मण, वाजसनेय ब्राह्मण आदि जैसा न कहके ताड्य महा- ब्राह्मण कहते है। इसी तरह व्याकरणके भाष्यको महाभाष्य ही कहते है। इतना बोलनेसे ही और भाष्योको न समझ केवल पातजल भाष्य ही समझा जाता है। तो क्या इसी दलीलसे यह भी माना जाय कि पहले