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तिरसूल
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बिजली की एक चमक ने यह खयाल दूर कर दिया। वह कोई आदमी था, जो बदन को चुराये पानी में भीगता हुआ एक तरफ़ जा रहा था। मुझे हैरत हुई कि इस मूसलाधार वर्षा मे कौन आदमी बारक से निकल सकता है और क्यों? मुझे अब उसके आदमी होने में कोई सन्देह न था। मैंने बन्दूक़ सम्हाल ली और फौजी कायदे के मुताबिक पुकारा--हाल्ट, हू कम्स देअर? फिर भी कोई जवाब नहीं। कायदे के मुताबिक तीसरी बार ललकारने पर अगर जवाब न मिले तो मुझे बन्दुक दाग देती चाहिए थी। इसलिए मैंने बन्दूक हाय मे लेकर खूब जोर से कडककर कहा--हाल्ट, हू कम्स देअर? जवाब तो अवकी भी न मिला मगर वह परछाई मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी। अब मुझे मालूम हुआ कि वह मर्द नही औरत है। इसके पहले कि मैं कोई सवाल करूॅ उसने कहा--सन्तरी, खुदा के लिए चुप रहो। मैं हूँ लुईसा।

मेरी हैरत की कोई हद न रही। अब मैंने उसे पहचान लिया। वह हमारे कमाण्डिंग अफ़सर की बेटी लुईसा ही थी। मगर इस वक़्त इस मूसलाधार मेंह और इस घटाटोप अँधेरे में वह कहाँ जा रही है? बारक मे एक हजार जवान मौजूद थे जो उसका हुक्म पूरा कर सकते थे। फिर वह नाजुकबदन औरत इस वक्त क्यों निकली और कहाँ के लिए निकली? मैने आदेश के स्वर में पूछा--तुम इस वक्त कहाँ जा रही हो?

लुईसा ने विनती के स्वर मे कहा--माफ़ करो सन्तरी, यह मैं नहीं बता सकती और तुमसे प्रार्थना करती हूँ कि यह बात किसी से न कहना। मैं हमेशा तुम्हारी एहसानमन्द रहूँगी।

यह कहते-कहते उसकी आवाज़ इस तरह काँपने लगी जैसे किसी पानी से भरे हुए बर्तन की आवाज़।

मैंने उसी सिपाहियाना अन्दाज से कहा--यह कैसे हो सकता है। मैं फौज का एक अदना सिपाही हूँ। मुझे इतना अख्तियार नही। मैं कायदे के मुताबिक आपको अपने सार्जेण्ट के सामने ले जाने के लिए मजबूर हूॅ।

'लेकिन क्या तुम नहीं जानते कि मैं तुम्हारे कमाण्डिंग अफसर की लडकी हूँ?'

मैंने ज़रा हँसकर जवाब दिया--अगर मै इस वक़्त कमाण्डिंग अफ़सर साहब को भी ऐसी हालत में देखूँ तो उनके साथ भी मुझे यही सख्ती करनी पड़ेगी। कायदा सबके लिए यकसाँ है और एक सिपाही को किसी हालत में उसे तोड़ने का अख्तियार नही है।