सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११८
गुप्त धन
 


'हाॅ, जीते जी कभी नहीं।

'अब मुझे इत्मीनान हो गया, सन्तरी। लुईसा तुम्हारी इस नेकी और एहसान को मौत की गोद में जाते वक्त भी न भूलेगी। तुम जहाॅ रहोगे तुम्हारी यह बहन तुम्हारे लिए भगवान से प्रार्थना करती रहेगी। जिस वक़्त तुम्हें कभी जरूरत हो, मेरी याद करना। लुईसा दुनिया के उस पर्दे पर होगी तब भी तुम्हारी खिदमत के लिए हाजिर होगी। वह आज से तुम्हें अपना भाई समझती है। सिपाही की ज़िन्दगी में ऐसे मौके आते है, जब उसे एक खिदमत करनेवाली बहन की जरूरत होती है। भगवान न करे तुम्हारी जिन्दगी में ऐसे मौके आये लेकिन अगर आयें तो लुईसा अपना फ़र्ज अदा करने में कभी पीछे न रहेगी। क्या मैं अपने नेकमिजाज भाई का नाम पूछ सकती हूँ?'

बिजली एक बार चमक उठी। मैने देखा लुईसा की आँखों में ऑसू भरे हुए है। बोला--लुईसा, इन हौसला बढ़ानेवाली बातों के लिए मैं तुम्हारा हृदय से कृतज्ञ हूँ। लेकिन मैं जो कुछ कर रहा हूँ, वह नैतिकता और हमदर्दी के नाते कर रहा हूँ। किसी इनाम की मुझे इच्छा नहीं है। मेरा नाम पूछकर क्या करोगी?

लुईसा ने शिकायत के स्वर में कहा--क्या बहन के लिए भाई का नाम पूछना भी फौजी क़ानून के खिलाफ है?

इन शब्दों में कुछ ऐसी सच्चाई, कुछ ऐसा प्रेम, कुछ ऐसा अपनापन भरा हुआ था, कि मेरी आँखों में बरबस ऑसू भर आये।

बोला--नहीं लुईसा, मैं सिर्फ़ यही चाहता हूँ कि इस भाई-जैसे सलूक में स्वार्थ की छाया भी न रहने पाये। मेरा नाम श्रीनाथ सिंह है।

लुईसा ने कृतज्ञता व्यक्त करने के तौर पर मेरा हाथ धीरे से दबाया और थैक्स कहकर चली गयी। अँधेरे के कारण बिलकुल नजर न आया कि वह कहाॅ गयी और न पूछना ही उचित था। मै वही खडा-खड़ा इस अचानक मुलाकात के पहलुओ को सोचता रहा। कमाण्डिंग अफ़सर की बेटी क्या एक मामूली सिपाही को, और वह भी जो काला आदमी हो, कुत्ते से बदतर नही समझती? मगर वही औरत आज मेरे साथ भाई का रिश्ता कायम करके फूली नहीं समाती थी।

इसके बाद कई साल बीत गये। दुनिया में कितनी ही क्रान्तियाॅ हो गयी। रूस की जारशाही मिट गयी, जर्मनी का कैसर दुनिया के स्टेज से हमेशा के लिए