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गुप्त धन
 


मैंने कहा--हाँ, खूब याद है। वह कारपोरल था, मैंने उसकी शिकायत कर दी थी और उसका कोर्टमार्शल हुआ था। वह कारपोरल के पद से गिरा कर मामूली सिपाही बना दिया गया था। हाँ, उसका नाम भी याद आ गया किप या कुप...

कप्तान नाक्स ने बात काटते हुए कहा--किरपिन। उसकी और मेरी सूरत मे आपको कुछ मेल दिखायी पड़ता है? मै ही वह किरपिन हूँ। मेरा नाम सी० नाक्स है, किरपिन नाक्स। जिस तरह उन दिनों आपको लोग श्रीनाथ कहते थे उसी तरह मुझे भी किरपिन कहा करते थे।

अब जो मैने ग़ौर से नाक्स की तरफ देखा तो पहचान गया। बेशक वह किरपिन ही था। मैं आश्चर्य से उसकी ओर ताकने लगा। लुईसा से उसका क्या सम्बन्ध हो सकता है, यह मेरी समझ में उस वक्त भी न आया।

कप्तान माक्स बोले--आज मुझे सारी कहानी कहनी पड़ेगी। लेफ़्टिनेण्ट चौधरी, तुम्हारी बजह से जब मैं कारपोरल से मामूली सिपाही बनाया गया और जिल्लत भी कुछ कम न हुई तो मेरे दिल में ईर्ष्या और प्रतिशोध की लपटे-सी उठने लगी। मै हमेशा इसी फिक्र में रहता था कि किस तरह तुम्हें जलील करूँ, किस तरह अपनी जिल्लत का बदला लूँ। मैं तुम्हारी एक-एक हरकत को, एक-एक बात को ऐब ढूँढनेवाली नजरों से देखा करता था। इन दस-बारह सालों में तुम्हारी सूरत बहुत कुछ बदल गयी है और मेरी निगाहों मे भी कुछ फ़र्क आ गया है जिसके कारण मैं तुम्हे पहचान न सका लेकिन उस वक्त तुम्हारी सूरत हमेशा मेरी आँखों के सामने रहती थी। उस वक़्त मेरी जिन्दगी की सबसे बड़ी तमन्ना यही थी कि किसी तरह तुम्हें भी नीचे गिराऊँ। अगर मुझे मौका मिलता तो शायद मै तुम्हारी जान लेने से भी बाज न आता।

कप्तान नाक्स फिर खामोश हो गये। मै और डाक्टर चन्द्रसिंह टकटकी लगाये कप्तान नाक्स की तरफ़ देख रहे थे।

नाक्स ने फिर अपनी दास्तान शुरू की--उस दिन, रात को जब लुईसा तुमसे बातें कर रही थी, मैं अपने कमरे मे बैठा हुआ तुम्हें दूर से देख रहा था। मुझे उस वक़्त क्या मालूम था कि वह लुईसा है। मैं सिर्फ़ यह देख रहा था कि तुम पहरा देते वक़्त किसी औरत का हाथ पकड़े उससे बाते कर रहे हो। उस वक़्त मुझे जितनी पाजीपन से भरी हुई खुशी हुई वह बयान नहीं कर सकता। मैंने सोचा, अब इसे ज़लील करूँगा। बहुत दिनों के बाद बचा फँसे है। अब किसी तरह न छोडूँगा। यह फ़ैसला करके मै कमरे से निकला और पानी में भीगता हुआ तुम्हारी तरफ़ चला।