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तिरसूल
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लेकिन जब तक मै तुम्हारे पास पहुँचूँ लुईसा चली गयी थी। मजबूर होकर मैं अपने कमरे में लौट आया। लेकिन फिर भी मै निराश न था, मैं जानता था कि तुम झूठ न बोलोगे और जब मैं कमाण्डिंग अफसर से तुम्हारी शिकायत करूॅगा तो तुम अपना क़सूर मान लोगे। मेरे दिल की आग बुझाने के लिए इतना इत्मीनान काफी था। मेरी आरजू पूरी होने मे अब कोई सदेह न था।

मैंने मुस्कराकर कहा--लेकिन आपने मेरी शिकायत तो नही की? क्या बाद को रहम आ गया?

नाक्स ने जवाब दिया--नही जी, रहम किस मरदूद को आता था। शिकायत न करने का दूसरा ही कारण था। सबेरा होते ही मैंने सबसे पहला काम यही किया कि सीधे कमाण्डिग अफ़सर के पास पहुॅचा। तुम्हे याद होगा मैं उनके बड़े बेटे राजर्स को घुड़सवारी सिखाया करता था इसलिए वहाँ जाने मे किसी किस्म की झिझक या रुकावट न हुई। जब मैं पहुँचा तो राजर्स और लुईसा दोनों चाय पी रहे थे। आज इतने सबेरे मुझे देखकर राजर्स ने कहा--आज इतनी जल्दी क्यो किरपिन? अभी तो वक्त नही हुआ? आज बहुत खुश नजर आ रहे हो?

मैंने कुर्सी पर बैठते हुए कहा--आज का दिन मेरी ज़िन्दगी मे मुबारक है। आज मुझे अपने पुराने दुश्मन को सजा देने का मौका हाथ आया है। आपको मालूम है न एक राजपूत सिपाही ने कमाण्डिंग अफसर से शिकायत करके मेरी तनज़्जुली करा दी थी।

राजर्स ने कहा--हॉ-हाॅ, मालूम क्यो नही है। मगर तुमने उसे गाली दी थी।

मैंने किसी क़दर झेपते हुए कहा--मैने गाली नही दी थी, सिर्फ़ ब्लडी कहा था। सिपाहियों में इस तरह की बदज़बानी एक आम बात है मगर उस राजपूत ने मेरी शिकायत कर दी। आज मैने उसे एक सगीन जुर्म में पकड़ पाया है। खुदा ने चाहा तो कल उसका भी कोर्ट-मार्शल होगा। मैंने आज रात को उसे एक औरत से बाते करते देखा है। बिलकुल उस वक़्त जब वह ड्यूटी पर था। वह इस बात से इनकार नही कर सकता। इतना कमीना नहीं है।

लुईसा के चेहरे का रग कुछ का कुछ हो गया। अजीब पागलपन से मेरी तरफ़ देखकर बोली--तुमने और क्या देखा?

मैंने कहा--जितना मैंने देखा है उतना उस राजपूत को जलील करने के लिए काफी है। जरूर उससे किसी से आशनाई है और वह औरत हिन्दोस्तानी नहीं,