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तिरसूल
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मुझसे न करो। मैं इसे कभी गवारा न करूँगी कि मेरी इज्जत-आबरू के लिए उसे ज़िल्लत और बदनामी का निशाना बनना पड़े। अगर तुम मेरी न मानोगे तो मै सच कहती हूँ, मैं खुदकुशी कर लूँगी।

उस वक़्त तो मै सिर्फ प्रतिशोध का प्यासा था। अब मेरे ऊपर वासना का भूत सवार हुआ। मै बहुत दिनों से दिल मे लुईसा की पूजा किया करता था लेकिन अपनी बात कहने का साहस न कर सकता था। अब उसको बस मे लाने का मुझे मौका मिला। मैंने सोचा अगर यह उस राजपूत सिपाही के लिए जान देने को तैयार है तो निश्चय ही मेरी बात पर नाराज़ नही हो सकती। मैंने उसी निर्दय स्वार्थपरता के साथ कहा--मुझे सख्त अफसोस है मगर अपने शिकार को छोड़ नहीं सकता।

लुईसा ने मेरी तरफ बेकस निगाहों से देखकर कहा--यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?

मैंने निर्दय निर्लज्जता से कहा--नहीं लुईसा, यह आखिरी फैसला नहीं है। तुम चाहो तो उसे तोड़ सकती हो, यह बिलकुल तुम्हारे इमकान में है। मैं तुमसे कितनी मुहब्बत करता हूँ, यह आज तक शायद तुम्हें मालूम न हो। मगर इन तीन सालों में तुम एक पल के लिए भी मेरे दिल से दूर नहीं हुई। अगर तुम मेरी तरफ़ से अपने दिल को नर्म कर लो, मेरी मुहब्बत की कद्र करो तो मैं सब कुछ करने को तैयार हूँ। मैं आज एक मामूली सिपाही हूँ और मेरे मुँह से मुहब्बत का निमन्त्रण पाकर शायद तुम दिल मे हँसती होगी, लेकिन एक दिन मैं भी कप्तान हो जाऊँगा और तब शायद हमारे बीच इतनी बड़ी खाई न रहेगी।

लुईसा ने रोकर कहा--किरपिन तुम बडे बेरहम हो, मैं तुमको इतना जालिम न समझती थी। खुदा ने क्यों तुम्हे इतना संगदिल बनाया, क्या तुम्हें एक बेकस औरत पर ज़रा भी रहम नही आता!

मैं उसकी बेचारगी पर दिल में खुश होकर बोला--जो खुद सगदिल हो उसे दूसरों की संगदिली की शिकायत करने का क्या हक है?

लुईसा ने गम्भीर स्वर मे कहा--मै बेरहम नही हूँ किरपिन, खुदा के लिए इन्साफ़ करो। मेरा दिल दूसरे का हो चुका, मैं उसके बगैर जिन्दा नहीं रह सकती और शायद वह भी मेरे बगैर जिन्दा न रहे। मैं अपनी बात रखने के लिए, अपने ऊपर नेकी करनेवाले एक आदमी की आबरू बचाने के लिए अपने ऊपर जबर्दस्ती करके अगर तुमसे शादी कर भी लूँ तो नतीजा क्या होगा? जोर-ज़बर्दस्ती से मुहब्बत नहीं पैदा होती। मैं कभी तुमसे मुहब्बत न करूँगी...