पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/१२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
स्वॉग
१३१
 

का कितना शौक था, बतला नहीं सकता। अनगिनत जगली सूअर, हिरन, तेंदुए, नीलगाये, मगर मारे होगे, एक बार चीते को मार डाला। मगर आज ज्ञान की मदिरा का वह नशा हुआ कि दुनिया का कही अस्तित्व ही नहीं रहा।

होली जलने का मुहूर्त नौ बजे रात को था। आठ ही बजे से गाँव के औरत मर्द, बड़े-बच्चे गाते-बजाते कबीरे उडाते होली की तरफ चले। सूबेदार साहब भी वाल-बच्चों को लिये हुए मेहमान के साथ होली जलाने चले।

गजेन्द्र ने अभी तक किसी बडे गॉव की होली न देखी थी। उसके शहर मे तो हर मुहल्ले मे लकडी के मोटे-मोटे दो-चार कुन्दे जला दिये जाते थे, जो कई-कई दिन जलते रहते थे। यहाॅ की होली एक लम्बे-चौडे मैदान में किसी पहाड़ की ऊँची चोटी की तरह आसमान से बाते कर रही थी। ज्योही पडित जी ने मंत्र पढकर नये साल का स्वागत किया, आतिशबाजी छूटने लगी। छोटे-बडे सभी पटाखे, छछूँदरे, हवाइयाॅ छोड़ने लगे। गजेन्द्र के सिर पर से कई छछूँदरे सनसनाती हुई निकल गयी। हरेक पटाखे पर बेचारा दो-दो चार-चार कदम पीछे हट जाता था और दिल मे इन उजड्ड देहातियों को कोसता था। यह क्या बेहूदगी है, बारूद कही कपडे मे लग जाय, कोई और दुर्घटना हो जाय तो सारी शरारत निकल जाये। रोज ही तो ऐसी वारदातें होती रहती है, मगर इन गँवारी को क्या खबर। यहाॅ तो दादा ने जो कुछ किया वही करेगे। चाहे उसमे कुछ तुक हो या न हो!

अचानक नजदीक से एक बमगोले के छूटने की गगनभेदी आवाज़ आयी कि जैसे बिजली कडकी हो। गजेन्द्र सिह चौककर कोई दो फिट ऊँचे उछल गये। अपनी जिन्दगी मे वह शायद कभी इतना न कूदे थे। दिल धक्-धक् करने लगा, गोया तोप के निशाने के सामने खड़े हों। फौरन दोनो कान उँगलियो से बन्द कर लिये और दस कदम और पीछे हट गये।

चुन्नू ने कहा--जीजाजी, आप क्या छोड़ेगे, क्या लाऊँ?

मुन्नू बोला--हवाइयाॅ छोडिए जीजाजी, बहुत अच्छी है। आसमान में निकल जाती है।

चुन्नू--हवाइयाॅ बच्चे छोडते है कि यह छोडेगे? आप बमगोला छोड़िए भाई साहब।