मदारी का प्रेम याद आया। बेचारा मुझे खोजता फिरता होगा। मदारिन प्याले मे रोटी और दूध लिये मुझे मन्नू, मन्नू पुकार रही होगी। हा विपत्ति! तूने मुझे कहाॅ लाकर छोडा। रात भर वह जागता और बार-बार खम्भे के चक्कर लगाता रहा। साहब का कुत्ता टामी बार-बार डराता और भूँकता था। मन्नू को उस पर ऐसा क्रोध आता था कि पाऊॅ तो मारे चपतों के चौधिया दूँ, पर कुत्ता निकट न आता, दूर ही से गरजकर रह जाता था।
रात गुजरी, तो साहब ने आकर मन्नू को दो-तीन ठोकरे जमायी। सुअर! रात-भर चिल्ला-चिल्लाकर नीद हराम कर दी। ऑख तक न लगी! बचा, आज भी तुमने गुल मचाया, तो गोली मार दूँगा। यह कहकर वह तो चले गये, अब नटखट लड़को की बारी आयी। कुछ घर के और कुछ बाहर के लड़के जमा हो गये। कोई मन्नू को मुँह चिढ़ाता, कोई उस पर पत्थर फेकता और कोई उसको मिठाई दिखाकर ललचाता था। कोई उसका रक्षक न था, किसी को उस पर दया न आती थी। आत्मरक्षा की जितनी क्रियाएँ उसे मालूम थी, सब करके हार गया। प्रणाम किया, पूजा-पाठ किया लेकिन इसका उपहार यही मिला कि लड़कों ने उसे और भी दिक़ करना शुरू किया। आज किसी ने उसके सामने चने भी न डाले। और यदि डाले भी होते तो वह खा न सकता। शोक ने भोजन की इच्छा न रक्खी थी।
सध्या समय मदारी पता लगाता हुआ साहब के घर पहुँचा। मन्नू उसे देखते ही ऐसा अधीर हुआ, मानो ज़ंजीर तोड़ डालेगा, खभे को गिरा देगा। मदारी ने जाकर मन्नू को गले से लगा लिया और साहब से बोला--'हजूर भूल-चूक तो आदमी से भी हो जाती है, यह तो पशु है। मुझे चाहे जो सजा दीजिए पर इसे छोड़ दीजिए। सरकार, यही मेरी रोटियों का सहारा है। इसके बिना हम दो प्राणी भूखों मर जायेंगे। इसे हमने लड़के की तरह पाला है। जब से यह भागा है, मदारिन ने दाना-पानी छोड़ दिया है। इतनी दया कीजिए सरकार, आपका अकबाल सदा रोशन रहे, इससे भी बड़ा ओहदा मिले, कलम चाक हो, मुद्दई बेबाक हो। आप है सपूत, सदा रहे मज़बूत। आपके बैरी को दाबे भूत।' मगर साहब ने दया का पाठ न पढ़ा था। घुडककर बोले--'चुप रह पाजी, टे-टे करके दिमाग चाट गया। बचा, बन्दर छोड़कर बाग का सत्यानाश करा डाला, अब खुशामद करने चले हो। जाकर देख तो, इसने कितने फल खराब कर दिये। अगर इसे ले जाना चाहता है तो दस रुपया लाकर मेरी नजर कर नही तो चुपके से अपनी राह पकड़।