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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/१४

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इज्जत का खून


मैंने कहानियो और इतिहासों मे तकदीर के उलट-फेर की अजीबोगरीब दास्ताने पढी है। शाह को भिखमगा और भिखमगे को शाह वनते देखा है। तकदीर एक छुपा हुआ भेद है। गलियो मे टुकड़े चुनती हुई औरते सोने के सिहासन पर बैठ गयी है और वह ऐश्वर्य के मतवाले जिनके इशारे पर तकदीर भी सर झुकाती थी, आन की आन मे चील-कौओं का शिकार बन गये है। पर मेरे सर पर जो कुछ बीती उसकी नजीर कही नहीं मिलती। आह, उन घटनाओ को आज याद करती हूँ तो रोगटे खडे हो जाते है और हैरत होती है कि अब तक मै क्यो और क्योंकर जिन्दा हूँ। सौन्दर्य लालसाओ का स्रोत है। मेरे दिल में क्या-क्या लालसाएँ न थी पर आह, निष्ठुर भाग्य के हाथों मर मिटी। मै क्या जानती थी कि वही आदमी जो मेरी एक-एक अदा पर कुर्बान होता था, एक दिन मुझे इस तरह जलील और बर्बाद करेगा।

आज तीन साल हुए जब मैंने इस घर में कदम रक्खा। उस वक्त यह एक हराभरा चमन था। मैं इस चमन की बुलबुल थी, हवा में उड़ती थी, डालियो पर चहकती थी, फूलों पर सोती थी। सईद मेरा था, मै सईद की थी। इस सगमरमर के हौज के किनारे हम महब्बत के पांसे खेलते थे। इन्हीं क्यारियो में उल्फ़त के तराने गाते थे। इसी चमन में हमारी मुहब्बत की गुप-चुप बातें होती थी, मस्तियों के दौर चलते थे। वह मुझसे कहते थे—तुम मेरी जान हो। मैं उनसे कहती थी—तुम मेरे दिलदार हो। हमारी जायदाद लम्बी-चौड़ी थी। जमाने की कोई फ़िक्र, जिन्दगी का कोई गम न था। हमारे लिए जिन्दगी सशरीर आनन्द, एक अनन्त चाह और बहार का तिलिस्म थी, जिसमें मुरादे खिलती थी और खुशियाँ हँसती थी। जमाना हमारी इच्छाओं पर चलनेवाला था। आसमान हमारी भलाई चाहता था और तकदीर हमारी साथी थी।

एक दिन सईद ने आकर कहा—मेरी जान, मैं तुमसे एक बिनती करने आया हूं। देखना इन मुसकराते हुए होंठो पर इनकार का हर्फ न आये। मैं चाहता हूं कि अपनी सारी मिलकियत, सारी जायदाद तुम्हारे नाम चढ़वा दूं। मेरे लिए