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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/१४२

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गुप्त धन
 


कई लड़कों ने इस पर 'पगली, पगली' का शोर मचाया और बुढ़िया उसी तरह शात भाव से आगे चली। जब वह निकट आयी तो मन्नू उसे पहचान गया। यह तो मेरी बुधिया है। वह दौड़कर उसके पैरों से लिपट गया। बुढ़िया ने चौककर मन्नू को देखा, पहचान गयी। उसने उसे छाती से लगा लिया।

मन्नू को गोद में लेते ही बुधिया को अनुभव हुआ कि मै नग्न हूँ। मारे शर्म के बह खडी न रह सकी। बैठकर एक लड़के से बोली--बेटा, मुझे कुछ पहनने को दोगे?

लड़का--तुझे तो लाज ही नही आती न?

बुढ़िया--नही बेटा, अब तो आ रही है। मुझे न जाने क्या हो गया था।

लड़कों ने फिर 'पगली पगली' का शोर मचाया। तो उसने पत्थर फेककर लड़कों को मारना शुरू किया। उनके पीछे दौड़ी।

एक लड़के ने पूछा--अभी तो तुझे क्रोध नहीं आता था। अब क्यों आ रहा है?

बुढ़िया--क्या जाने क्यों अब क्रोध आ रहा है। फिर किसी ने पगली कहा तो बदर से कटवा दूँगी।

एक लड़का दौड़कर एक फटा हुआ कपड़ा ले आया। बुधिया ने वह कपड़ा पहन लिया। बाल समेट लिये। उसके मुख पर जो एक अमानुषी आभा थी, उसकी जगह चिन्ता का पीलापन दिखायी देने लगा। वह रो-रोकर मन्नू से कहने लगी--बेटा, तुम कहाँ चले गये थे। इतने दिन हो गये, हमारी सुध न ली। तुम्हारा मदारी तुम्हारे ही वियोग में परलोक सिधारा, मै भिक्षा मॉगकर अपना पेट पालने लगी, घर-द्वार तहस-नहस गया। तुम थे तो खाने की, पहनने की, गहने की, घर की इच्छा थी, तुम्हारे जाते ही सब इन्छाएँ लुप्त हो गयी। अकेली भूख तो सताती थी, पर ससार में और किसी बात की चिन्ता न थी। तुम्हारा मदारी मरा, पर मेरी आँखों मे ऑसू न आये। वह खाट पर पडा कराहता था और मेरा कलेजा ऐसा पत्थर हो गया था कि उसकी दबा-दारू की कौन कहे, उसके पास खड़ी तक न होती थी। सोचती थी--यह मेरा कौन है। अब आज वे सब बाते और अपनी वह दशा याद आती है, तो यही कहना पड़ता है कि मै सचमुच पगली हो गयी थी, और लड़कों का मुझे पगली नानी कहकर चिढाना ठीक ही था।