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सैलानी बंदर
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यह कहकर बुधिया मन्नू को लिये हुए शहर के बाहर एक बाग में गयी, जहाँ वह एक पेड के नीचे रहती थी। वहाॅ थोडी-सी पुआल बिछी हुई थी। इसके सिवा मनुष्य के बसेरे का और कोई चिन्ह न था।

आज से मन्नू बुधिया के पास रहने लगा। वह सबेरे घर से निकल जाता और नकले करके, भीख माॅगकर बुधिया के खाने भर को नाज या रोटियाँ ले आता था। पुत्र भी अगर होता तो वह इतने प्रेम से माता की सेवा न करता। उसकी नकलों से खुश होकर लोग उसे पैसे भी देते थे। उन पैसो से बुधिया खाने की चीजे बाजार से लाती थी।

लोग बुधिया के प्रति बदर का यह प्रेम देखकर चकित हो जाते और कहते थे कि यह बदर नही, कोई देवता है।

माधुरी फरवरी, १९२४