हजरत--जैनब, खुदा की राह मे कॉटे है।
जैनब--लगन को कॉटो की परवा नहीं होती।
हजरत--ससुराल से नाता टूट जायगा।
जैनब--खुदा से तो नाता जुड जायगा।
हजरत--और अबुलआस?
जैनब की ऑखो में आँसू डबडबा आये। कातर स्वर में बोली--अब्बाजान, इसी बेड़ी ने इतने दिनो मुझे बाॅध रक्खा था, नहीं तो मै कबकी आपकी शरण मे आ चुकी होती। मैं जानती हूँ, उनसे जुदा होकर जीती न रहूँगी और शायद उनको भी मेरा वियोग दुस्सह्य होगा, पर मुझे विश्वास है कि एक दिन जरूर आयेगा जब वे खुदा पर ईमान लायेगे और मुझे फिर उनकी सेवा का अवसर मिलेगा।
हजरत--बेटी, अबुलआस ईमानदार है, दयाशील है, सत्यवक्ता है, किन्तु उसका अहकार शायद अन्त तक उसे ईश्वर से विमुख रक्खे। वह तक़दीर को नहीं मानता, आत्मा को नहीं मानता, स्वर्ग और नरक को नहीं मानता। कहता है, 'सृष्टि-सचालन के लिए खुदा की जरूरत ही क्या है?' हम उससे क्यों डरें? विवेक और बुद्धि की हिदायत हमारे लिए काफी है।' ऐसा आदमी खुदा पर ईमान नही ला सकता। अधर्म को जीतना आसान है, पर जब वह दर्शन का रूप धारण कर लेता है तो अजेय हो जाता है।
जैनब ने निश्चयात्मक भाव से कहा--हजरत, आत्मा का उपकार जिसमें हो मुझे वही चाहिए। मैं किसी इन्सान को अपने और खुदा के बीच मे न रहने दूँगी।
हजरत--खुदा तुझ पर दया करे बेटी। तेरी बातों ने दिल खुश कर दिया। यह कहकर उन्होने जैनब को प्रेम से गले लगा लिया।
३
दूसरे दिन जैनब को जामा मसजिद मे यथाविधि कलमा पढ़ाया गया।
क़़ुरैशियो ने जब यह खबर पायी तब वे जल उठे। ग़जब खुदा का। इसलाम ने तो बड़े-बड़े घरो पर हाथ साफ करना शुरू किया। अगर यही हाल रहा तो धीरे-धीरे उसकी शक्ति इतनी बढ़ जायगी कि उसका सामना करना कठिन हो जायगा। लोग अबुलआस के घर पर जमा हुए। अबूसिफ़ियान ने, जो इसलाम के शत्रुओं मे सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति था (और जो बाद को इसलाम पर ईमान लाया), अबुलास से कहा--तुम्हे अपनी बीवी को तलाक देना पड़ेगा।