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नबी का नीति-निर्वाह
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अबु०--मैं जैनब को तलाक देने के पहले ज़िन्दगी को तलाक दे दूँगा।

हजरत को अबुलआस की बातो से इत्मीनान हो गया। आस को हरम में जैनब से मिलने का अवसर मिला। आस ने पूछा--जैनब, मै तुम्हे साथ ले चलने आया हूॅ। धर्म के बदलने से कही तुम्हारा मन तो नहीं बदल गया?

जैनब रोती हुई पति के पैरो पर गिर पड़ी और बोली--स्वामी, धर्म बार-बार मिलता है, हृदय केवल एक बार। मैं आपकी हूॅ। चाहे यहाॅ रहूॅ, चाहे वहाॅ। लेकिन समाज मुझे आपकी सेवा मे रहने देगा?

अबु०--यदि समाज न रहने देगा तो मै समाज ही से निकल जाऊॅगा। दुनिया मे रहने के लिए बहुत स्थान है। रहा मै, तुम खूब जानती हो कि किसी के धर्म मे विघ्न डालना मेरे सिद्धान्त के प्रतिकूल है।

ज़ैनब चली तो खुदैजा ने उसे बदहशॉ के लालो का एक बहुमूल्य हार बिदाई से दिया।

इसलाम पर विधर्मियों के अत्याचार दिन-दिन बढने लगे। अवहेलना की दशा से निकलकर उसने भय के क्षेत्र में प्रवेश किया। शत्रुओ ने उसे समूल नाश करने की आयोजना करना शुरू की। दूर-दूर के कबीलो से मदद माँगी गयी। इसलाम मे इतनी शक्ति न थी कि शस्त्रबल से शत्रुओ को दबा सके। हज़रत मुहम्मद ने अन्त को मक्का छोड़कर मदीने की राह ली। उनके कितने ही भक्तों ने उनके साथ हिजरत की। मदीने मे पहुॅचकर मुसलमानों मे एक नयी शक्ति, एक नयी स्फूर्ति का उदय हुआ। वे निःशक होकर धर्म का पालन करने लगे। अब पड़ोसियों से दबने और छिपने की ज़रूरत न थी। आत्मविश्वास बढा। इधर भी विधर्मियों का सामना करने की तैयारियाॅ होने लगी।

एक दिन अबुलआस ने आकर स्त्री से कहा--ज़ैनब, हमारे नेताओ ने इसलाम पर जिहाद करने की घोषणा कर दी।

जैनब ने घबराकर कहा--अब तो वे लोग यहाॅ से चले गये फिर जिहाद की क्या जरूरत?

अबु०--मक्का से चले गये, अरब से तो नहीं चले गये, उनकी ज्य़ादतियाँ बढ़ती जा रही है। जिहाद के सिवा और कोई उपाय नही। मेरा उस जिहाद मे शरीक होना बहुत ज़रूरी है।