अकुरित न किया हो, पर साम्यवाद को उनके रोम-रोम में प्रविष्ट कर दिया था। वे धर्म के विषय में किसी के साथ रू-रिआयत न कर सकते थे, चाहे वह हजरत का निकट सम्बन्धी ही क्यों न हो। अबुलआस सिर झुकाये पचो के सामने खड़े थे और कैदी पेश होते थे। उनके मुक्तिधन का मुलाहिजा होता था और वे छोड दिये जाते थे। अबुलआस को कोई पूछता ही न था, यद्यपि वह हार एक तश्तरी मे पचों के सम्मुख रक्खा हुआ था। हजरत के मन में बार-बार प्रबल इच्छा होती थी कि सहाबियो से कहे यह हार कितना बहुमूल्य है। पर धर्म का बन्धन, जिसे उन्होने स्वय प्रतिष्ठित किया था, मुँह से एक शब्द भी न निकलने देता था। यहाॅ तक कि समस्त बन्दीजन मुक्त हो गये, अबुलआस अकेला सिर झुकाये खडा रहा--हजरत मुहम्मद के दामाद के साथ इतना लिहाज भी न किया गया कि बैठने की आज्ञा तो दे दी जाती। सहसा जैद ने अबुलआस की ओर कटाक्ष करके कहा--देखा, खुदा इसलाम की कितनी हिमायत करता है। तुम्हारे पास हमसे पॅचगुनी सेना थी, पर खुदा ने तुम्हारा मुँह काला किया। देखा या अब भी ऑखे नही खुली?
अबुलआस ने विरक्त भाव से उत्तर दिया--जब आप लोग यह मानते है कि खुदा सबका मालिक है तब वह अपने एक बन्दे को दूसरे की गर्दन काटने मे मदद न देगा। मुसलमानो ने इसलिए विजय पायी कि गलत या सही उन्हे अटल विश्वास है कि मृत्यु के बाद हम स्वर्ग में जायॅगे। खुदा को आप नाहक बदनाम करते है।
जैद--तुम्हारा मुक्ति-धन काफी नहीं है।
अबुलआस--मैं इस हार को अपनी जान से ज्यादा कीमती समझता हूँ। मेरे घर में इससे बहुमूल्य और कोई वस्तु नही है।
जैद--तुम्हारे घर मे जैनब हैं, जिन पर ऐसे सैकड़ों हार कुर्बान किये जा सकते है।
अबु०--तो आपकी मशा है कि मेरी बीवी मेरा फ़दिया हो। इससे तो यह कही बेहतर है कि मैं कत्ल कर दिया जाता। अच्छा अगर मै वह फदिया न दूँ तो?
जैद -तो तुम्हें आजीवन यहाँ गुलामो की तरह रहना पड़ेगा। तुम हमारे रसूल के दामाद हो, इस रिश्ते से हम तुम्हारा लिहाज करेगे, पर तुम गुलाम ही समझे जाओगे।
हजरत मुहम्मद निकट बैठे हुए ये बाते सुन रहे थे। वे जानते थे जैनब और आस एक दूसरे पर जान देते है। उनका वियोग दोनों ही के लिए घातक होगा। दोनो घुल-घुलकर मर जायॅगे। सहाबियो को एक बार पच चुन लेने के बाद उनके