महीना है। गीत में एक वियोगी हृदय की कथा ऐसे दर्दभरे शब्दों मे बयान की गयी थी कि बरबस आँखो से आंसू टपकने लगे। इतने मे बाहर से एक लालटेन की रोशनी नजर आयी। सईद का नौकर पिछले दरवाजे से दाखिल हुआ। उसके पीछे वही हसीना और सईद दोनो चले आ रहे थे। हसीना ने मेरे पास आकर कहा—आज यहाँ नाच-रग की महफिल सजेगी और शराब के दौर चलेगे।
मैंने घृणा से कहा—मुबारक हो।
हसीना—बारहमासे और मल्हार की ताने उडेगी, साजिन्दे आ रहे हैं।
मैं—शौक से।
हसीना—तुम्हारा सीना हसद से चाक हो जायगा।
सईद ने मुझसे कहा—जुबैदा, तुम अपने कमरे में चली जाओ, यह इस वक्त आपे मे नहीं है।
हसीना ने फिर मेरी तरफ लाल-लाल आँखे निकालकर कहा—मैं तुम्हें अपने परों की धूल के बराबर भी नहीं समझती।
मुझे फिर जब्त न रहा, अकडकर बोली—और मै तुझे क्या समझती हूँ, एक कुतिया, दूसरों की उगली हुई हड्डियां चिचोडती फिरती है!
अब सईद के भी तेवर बदले, मेरी तरफ भयानक आँखों से देखकर बोले—जुबैदा, तुम्हारे सर पर शैतान तो नहीं सवार है?
सईद का यह जुमला मेरे जिगर में चुभ गया, तड़प उठी, जिन होंठों से हमेशा मुहब्बत और प्यार की बाते सुनी हों उन्ही से यह जहर निकले, और बिलकुल बकसूर! क्या मैं ऐसी नाचीज और हकीर हो गयी हूँ कि एक बाजारू औरत भी मुझे छेड़कर गालियाँ दे सकती है और मेरा जबान खोलना मना! मेरे दिल में साल भर से जो बुखार जमा हो रहा था, वह उबल पड़ा। मैं झूले से उतर पड़ी और सईद की तरफ शिकायतभरी निगाहो से देखकर बोली—शैतान मेरे सर पर सवार है या तुम्हारे सर पर, इसका फैसला तुम खुद कर सकते हो। सईद, मै तुमको अब तक शरीफ़ और गैरतवाला समझती थी, तुमने मेरे साथ बेवफाई की, इसका मलाल मुझे जरूर था, मगर मैने सपने में भी यह न सोचा था कि तुम गैरत से इतने खाली हो कि एक हया-फरोश औरत के पीछे मुझे इस तरह जलील करोगे। इसका बदला तुम्हें खुदा से मिलेगा।
हसीना ने तेज होकर कहा—तू मुझे हया-फरोश कहती है?
मैं—बेशक कहती हूँ।